श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७८

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७८

रोहिले की कथा के पन्ने पलटते हुए हम उससे सीख भी ग्रहण कर रहे हैं। यह सब करने का हमारा उद्देश्य यही है कि इस कथा के माध्यम से मुझे क्या सीखना है? इस कथाद्वारा दी गई कौन सी सीख लेकर मुझे अपनेआप में क्या परिवर्तन करना चाहिए? श्रीसाईनाथ का गुणसंकीर्तन मुझे कैसे करना चाहिए? […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७७

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७७

रोहिले की कथा द्वारा बोध प्राप्त करते हुए पिछले लेख में हमने महत्त्वपूर्ण और भी एक मुद्दे का अध्ययन किया और वह है होशोंहवास खो देना। हमें अपने-आप में ही खुश होकर अधिकाधिक जोर-शोर के साथ ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करते ही रहना चाहिए क्योंकि इसी गुणसंकीर्तन के ही कारण उस रोहिली से हमें हमेशा के […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७६

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-७६

रोहिले की कथा का अध्ययन करते समय हमने अब तक निम्नलिखित मुद्दों से बोध प्राप्त किया। १) बाबा के गुणों से मन मोहित होकर शिरडी जाना। २) अन्य सभी मार्ग को छोड़कर शिरडी अर्थात भक्तिभूमि को चुनना (का चुनाव करना) ३) साई के सामीप्य में रहना। ४) साई के प्रति समर्पित हो जाना। ५) साई […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७५

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७५

दिन हो अथवा रात, द्वारकामाई हो अथवा चावड़ी, रोहिला उच्च स्वर में ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करने लगा। हमने इनमें से दो मुद्दों का अध्ययन किया। अब हम तीसरे महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में अध्ययन करेंगे। रोहिला गुणसंकीर्तन कैसे करता है, इस बात का वर्णन इस पंक्ति में हेमाडपंत ने काफ़ी सुंदर तरीके से किया है। […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७४

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७४

रोहिले की कथा देखी जाए तो अनेक पहलुओं से संपन्न है। हमने रोहिले के वर्णन द्वारा हेमाडपंत के माध्यम से साईनाथ हमें क्या उपदेश देना चाहते हैं इस संबंध में हमने विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। इसके साथ ही हम रोहिले के आचरण से संबंधित अध्ययन भी कर रहे हैं। पिछले लेख में रोहिला द्वारकामाई में क्यों […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७३

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७३

ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करना यह श्रद्धावानों के लिए होनेवाले अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्दे का अध्ययन हम कर रहे हैं। इसके लिए हमने नीचे दिए गए उपमुद्दों का अध्ययन अब तक किया। १) किसी भी विरोध की परवाह किए बगैर ईश्‍वर का गुणसंकीर्तन करते रहना। २) सभी द्वंद्वों में गुणसंकीर्तन शुरू रखना। ३) साईनाथ का कृपाहस्त सिर […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७२

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७२

पिछले लेख में हमने देखा कि गुणसंकीर्तन करते समय किसी भी विरोधाभास की परवाह किए बगैर ही हमें गुणसंकीर्तन करना चाहिए। इसके साथ ही मेरे सिर पर श्रीसाईनाथ का हाथ है, मुझपर श्रीसाईनाथ की कृपा है इसीलिए मेरे मुख से श्रीसाईनाथ का गुणसंकीर्तन हो रहा है। इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए साईनाथ का […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७१

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७१

पुष्टता होना उचित विकास है। वह उन्मत्त होना यह विकृति है। हमारे मन को उन्मत्त नहीं होना है, पुष्टता प्राप्त हो इसके लिए बाबा का चरण पकड़े बगैर अन्य कोई रास्ता ही नहीं। (बाबा के चरणों को पकड़ना यही एकमेव मार्ग है, और कोई अन्य मार्ग नहीं है।) ‘उन्मत्त, मदमस्त हो चुका भैंसा’ बनना है […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७०

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ७०

हम दिन हो या रात, दु:ख हो अथवा सुख चाहे जो भी हो, यदि हम अपने इस साईनाथ का गुणसंकीर्तन करते रहते हैं, ऐसे में हमारे प्रारब्ध का नाश करनेवाली हरिकृपा हमारे जीवन में प्रवेश करती ही है। और हमारे प्रारब्ध का नाश करती ही है। हमारे त्रिविध दु:खों एवं चिंताओं का नाश करती ही […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६९

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६९

रोहिले की कथा के आधार पर हम विस्तारपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं। श्रीसाईनाथ भगवान के भक्तिसेवा पथ पर चलने के लिए मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अब तक हमने तीन मुद्दों पर अध्ययन किया। १) शिरडी में उत्कटतापूर्वक जाना चाहिए २) बाबा के गुणों से मोहित होकर ही वहाँ जाना चाहिए ३) बाबा […]

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