क्रान्तिगाथा-१५

क्रान्तिगाथा-१५

मेरठ के भारतीय सैनिक जिस वक़्त अँग्रेज़ों के खिलाफ़ खड़े हो गये, उसके बाद अन्य जगहों के अँग्रेज़ों ने, खास कर सेना अफ़सर रहनेवाले अँग्रेज़ों ने अधिकतर इलाक़ों में वहाँ पर रहनेवाले अँग्रेज़ों की सुरक्षा व्यवस्था का इंतज़ाम करना शुरू कर दिया था। ५ जून को जब कानपुर स्थित भारतीय सैनिकों ने अँग्रेज़ों के खिलाफ़ […]

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क्रान्तिगाथा- १४

क्रान्तिगाथा- १४

भारतीयों को ग़ुलाम बनानेवाले अँग्रेज़ों को शायद लग रहा था कि भारतीयों के रगों में बहनेवाली बहादुरी अब खत्म हो गयी है। लेकिन १८५७ के इस स्वतन्त्रतासंग्राम ने अँग्रेज़ों की इस सोच की धज्जियाँ उडा दी। क्योंकि १८५७ के इस स्वतन्त्रता यज्ञ में एक आम आदमी से लेकर राजा-महाराजाओं तक कई भारतवासी दास्यमुक्त होने के […]

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क्रान्तिगाथा-१३

क्रान्तिगाथा-१३

जून के महीने की शुरुआत ही हुई थी, सारे भारतवर्ष के सैनिकों के लिए एक चेतना भरा माहौल लेकर। मई के अन्त में और जून के पहले ह़फ़्ते में उत्तरी भारत के इला़कें एक के बाद एक करके आज़ाद होने के लिए युद्ध के मैदान में उतरने लगे थे। दिल्ली का तख़्त अपने कब्ज़े में […]

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क्रान्तिगाथा-१२

क्रान्तिगाथा-१२

३१ मई यह दिन स्वतन्त्रतायोद्धाओं द्वारा सर्वमत से अंग्रेज़ों की हुकूमत के त़ख्त को पलट देने के लिए हालाँकि मुकर्रर किया गया था, मग़र फिर भी दास्यमुक्त होने की कल्पना से ही सैनिकों से सब्र नहीं किया जा रहा था। साथ ही कुछ घटनाएँ भी इस तरह होती गयीं कि ३१ मई के पहले ही […]

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क्रान्तिगाथा- ११

क्रान्तिगाथा- ११

३१ मई १८५७ का दिन! दर असल बहुत पहले ही, अंग्रेजों की हु़कूमत के बन्धनों को तोड़ देने के लिए एकजुट होकर खड़े होने के दिन के रूप में स्वतन्त्रतासंग्राम के अग्रणियों द्वारा निर्धारित किया गया था। तो हक़ीक़त में ३१ मई यह दिन शान्ति में भला कैसे गुजर सकता था? मेरठ के सैनिकों की […]

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क्रान्तिगाथा-१०

क्रान्तिगाथा-१०

दिल्ली दर असल कब की अँग्रेज़ों के कब्ज़े में जा चुकी थी, साल था १८०३। सन १७८५ से दिल्ली के बादशाह को मराठों की सुरक्षा मिल रही थी। उत्तरी भारत में शासन करनेवाले शिंदे दिल्ली की सुरक्षा करने में सक्रिय थे। लेकिन दुर्भाग्यवश १८०३ में मराठा-अँग्रेज़ों के बीच जो युद्ध हुआ, उस युद्ध के बाद […]

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क्रान्तिगाथा- ९

क्रान्तिगाथा- ९

११ मई १८५७ का वह दिन दिल्ली के लिए कुछ अनोखा ही था। मेरठ के सैनिक दिल्ली पहुँच गये और अब उन्होंने ठेंठ दिल्ली में स्थित मुग़ल बादशाह से ही इस स्वतन्त्रतासंग्राम के सूत्र अपने हाथ में ले लेने की दरख्वास्त की। ये आखिरी मुग़ल बादशाह उस वक़्त काफी बूढ़े हो चुके थे और ‘बादशाह’ […]

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क्रान्तिगाथा- ८

क्रान्तिगाथा- ८

महज़ सश्रम कारावास की सज़ा देकर अँग्रेज़ कहाँ सन्तुष्ट होनेवाले थे! इन ८५ सैनिकों के यूनिफॉर्म्स, बॅजेस् और जूतें उन्हें सज़ा सुनाते ही फ़ौरन उनसे छीन लिये गये और उन्हें जेल भेज दिया गया। इस तरह अँग्रेज़ सरकार की कारवाई तो पूरी हो गयी और वह भी हज़ारों लोगों की मौजूदगी में और यह सब […]

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क्रान्तिगाथा – ७

क्रान्तिगाथा – ७

इंग्लैंड के एक आम आदमी को जो मिल रहा था, वह भारत के हर एक नागरिक से छीना जा रहा था। जब कोई मानवी समूह किसी अन्य मानवी समूह की ग़ुलामी के शिकंजे में आ जाता है, उसमें भी किसी विदेशी भूमि से आये हुए मानवों के कब्ज़े में आ जाता है, तब उस मानवी […]

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क्रान्तिगाथा – ६

क्रान्तिगाथा – ६

अँग्रेज़ों की हुकूमत को पहला धक्का पहुँचा, २९ मार्च १८५७ के दिन। मातृभूमिभक्त भारतीय मन में ओतप्रोत भरे हुए असंतोष को प्रकट किया, मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने अपनी कृति के द्वारा। सारे भारत भर में एक चेतना की लहर दौड़ गयी, इस ग़ुलामी को खत्म कर देने के लिए, उद्धत और खूँखार […]

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