क्रान्तिगाथा-२५

क्रान्तिगाथा-२५

१८५८ के जून महीने की २० तारीख तक क्रान्तिवीरों का अँग्रेज़ों के साथ संघर्ष चल रहा था। आखिर जून २०, १८५८ को अँग्रेज़ों ने ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया और अँग्रेज़ों को लगा कि भारतीयों के दिमाग़ पर सवार हुआ स्वतन्त्रताप्राप्ति का जुनून शायद उतर गया है। क्योंकि तब तक अनेक वीर शहीद हो चुके […]

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क्रान्तिगाथा-२४

क्रान्तिगाथा-२४

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के वीर हौतात्म्य से अब भारत के उत्तरी इलाक़ों में क्रान्ति की ज्वालाएँ कुछ कम सी हो जाने के आसार दिखायी दे रहे थे। लेकिन जब उत्तरी भारत में स्वतन्त्रता का यज्ञकुंड प्रज्वलित था, तब दक्षिणी और पश्‍चिमी भारत में क्या परिस्थितियाँ थीं, यह देखना भी उतना ही ज़रूरी है। भारत […]

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क्रान्तिगाथा-२३

क्रान्तिगाथा-२३

दास्यता और स्वतन्त्रता के बीच का फर्क मानवों की तरह अन्य सजीवों को महसूस नहीं होता और इसीलिए हमारी भूमि पर और स्वाभाविक रूप से हमारे संपूर्ण जीवन पर जब विदेशी लोग सत्ता स्थापित करते हैं, अत्यधिक ज़ुल्म, तानाशाही और अन्याय करते हैं, तब एक आम आदमी भी ‘स्वतन्त्रता’ के अपने मूलभूत मानवी हक़ को […]

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क्रान्तिगाथा-२२

क्रान्तिगाथा-२२

लखनौ की ब्रिटीश रेसिडन्सी में अब तक पनाह लिये हुए अँग्रेज़ों की आशाएँ अब पल्लवित होने लगी थीं। लगभग ८७ दिनों के संघर्ष के बाद लखनौ के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा कर लेने में बाहर से आयी हुई अँग्रेज़ सेना क़ामयाब हो गयी थी। इतने दिनों के संघर्ष के बाद भी लखनौ के बाहर से […]

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क्रान्तिगाथा-२१

क्रान्तिगाथा-२१

अँग्रेज़ों ने दिल्ली पर कब्ज़ा तो कर लिया, लेकिन अब दिल्ली की सूरत पूरी तरह बदल गयी। इतने दिनों तक स्वतन्त्रता का सुख अनुभव करनेवाली दिल्ली अब फिर एक बार अँग्रेज़ों की ग़ुलामी के बन्धन में जकड़ गयी। भारत के उत्तरी इलाक़ों में से दिल्ली में दाख़िल हुए क्रान्तिकारियों ने सवा सौ दिनों से भी […]

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क्रान्तिगाथा- २०

क्रान्तिगाथा- २०

अगस्त के अन्त में दिल्ली से पास रहनेवाले नज़फ़गढ़ में मिली जीत से अँग्रेज़ों का मनोबल का़फ़ी बढ़ गया था; वहीं इतने दिनों से अँग्रेज़मुक्त दिल्ली में रहनेवाली क्रान्तिकारियों की सेना को लगा हुआ यह पहला बड़ा झटका था। क्योंकि इस जंग में नीमच से आये हुए क्रान्तिकारी शहीद हो गये थे। अब दिल्ली को […]

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क्रान्तिगाथा- १९

क्रान्तिगाथा- १९

दिल्ली! क्रान्तिकारियों के लिए दिल्ली जितनी अहमियत रखती थी, उतनी ही अँग्रेज़ों के लिए भी। अब दिल्ली के आसपास के छोटे बड़े इलाक़ों में से क्रान्तिवीर दिल्ली आने लगे। अपने शहर या गाँव की अँग्रेज़ हुकूमत का तख्ता पलट देने के बाद वहाँ के भारतीय सैनिक हाथ आये खज़ाने, शस्त्र-अस्त्रों को लेकर दिल्ली की ओर […]

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क्रान्तिगाथा- १८

क्रान्तिगाथा- १८

१८५७ के अप्रैल महीने में बहने लगीं क्रान्ति की हवाएँ यानी क्रान्तियज्ञ की ज्वालाएँ अब भारत के अन्य इलाक़ों में फ़ैलने लगीं। अब मातृभूमि को दास्यता से मुक्त करने के लिए शुरू हो चुका यह यज्ञ भारत के मध्य और पश्‍चिमी इला़के में भी चल रहा था। हालाँकि कानपुर पर पुन: कब्ज़ा कर लेने में […]

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क्रान्तिगाथा-१७

क्रान्तिगाथा-१७

१८५७  के जून के महीने का आखरी सप्ताह कानपुर की तरह लखनौ के लिए भी स्वतंत्रता के सूर्योदय को अपने साथ ले आया। चिन्हत् की हार के बाद लखनौ के अँग्रेज़ों ने अपनी रेसिडन्सी की पनाह ले ली और लखनौ में नवाब का बेटा, जो इस समय बहुत ही छोटा था, उसे राजगद्दी पर बिठाकर […]

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क्रान्तिगाथा-१६

क्रान्तिगाथा-१६

वह १८५७ के जून महीने का आखिरी ह़फ़्ता था, मग़र अब भी कानपुर के अँग्रेज़ अपने आश्रयस्थल में से हटने के लिए तैयार नहीं थे। आख़िर इसपर एक तरकीब सोची, नानासाहब पेशवा और उनके साथियों ने। २४ जून १८५७ को अँग्रेज़ों के आश्रयस्थल में नानासाहब पेशवा का सन्देश लेकर एक युध्दबंदी चला गया। नानासाहब के […]

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