क्रान्तिगाथा- ३५

क्रान्तिगाथा- ३५

आख़िर ‘वंगभग’ हो गया यानी अँग्रेज़ों ने बंगाल का विभाजन किया। अब क्या होगा? हो सकता है कि भारतीय उनकी अगुआई करनेवाले नेताओं के साथ विरोध करेंगे, मोरचे निकालेंगे, सभाएँ लेंगे और कुछ समय बाद शान्त हो जायेंगे, ऐसा अँग्रेज सोच रहे थे। भारतीयों के विचार इस तरह की किसी कृति को जन्म देंगे कि […]

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क्रान्तिगाथा-३४

क्रान्तिगाथा-३४

भारत में कुछ ही मीलों की दूरी पर भाषा बदलती है। विभिन्न प्रदेशों के निवासियों का रहनसहन, खान-पान भी अलग अलग होता है। भारत में  हालाँकि इस तरह की विविधता है, मग़र फिर भी वक़्त आने पर भारत एकजुट होकर खड़ा रहता है और अपने दुश्मनों से लडता है, इस बात का अनुभव अँग्रेज़ों ने […]

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क्रान्तिगाथा-३३

क्रान्तिगाथा-३३

भारत को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए जो क्रान्तियज्ञ शुरू हुआ था, उस क्रान्तियज्ञ में लगातार हौतात्म्य की आहुतियाँ अर्पण की जा रही थीं और यह यज्ञ अहर्निश चल रहा था। भारतीय स्वतन्त्रता की लगन अब प्रत्येक भारतीय के मन में जाग उठी थी और इसी वजह से सर्वसामान्य भारतीय मन भी अब इसमें किसी न […]

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क्रान्तिगाथा-३२

क्रान्तिगाथा-३२

प्लेग के संक्रमण को रोकने के लिए पुणे के स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन के द्वारा उपायों के नाम पर किये जा रहे अमानुष अत्याचारों ने अब सारी हदें पार कर दी थीं। आम आदमी निरंतर भय के साये में जी रहा था। एक तऱफ बीमारी का डर और दूसरी तऱफ अँग्रेज़ सैनिक कभी भी आकर घर […]

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क्रान्तिगाथा-३१

क्रान्तिगाथा-३१

लोकमान्य टिळक जी की क़लम और विचार से भारतीय जनता जागृत होने लगी है और भारतीयों को अपने अधिकारों का एहसास होने लगा है यह बात अँग्रेज़ सरकार के लिए सिरदर्द साबित होने लगी थी। क्योंकि टिळकजी महज़ जनजागृति करके रूकते नहीं थे, बल्कि अँग्रेज़ सरकार को खत लिखना, उनकी कमिटी से चर्चा करना इन […]

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क्रान्तिगाथा-३०

क्रान्तिगाथा-३०

बड़ा ही धूमधाम भरा समय, लेकिन उतनी ही देशभक्ति से भरा समय। ‘देश को आज़ाद करने’ के विचार से प्रभावित कई देशभक्त देश के विभिन्न प्रदेशों में उदयित हो रहे थे और अपनी अपनी क्षमता से समाजजागृति का कार्य और अँग्रेज़ों को अपने देश से खदेड़ देने का कार्य उत्साहपूर्वक कर रहे थे। लोकमान्य बाळ […]

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क्रान्तिगाथा-२९

क्रान्तिगाथा-२९

अँग्रेज़ों के द्वारा किये जा रहे आर्थिक शोषण के कारण हुई भारतीय समाज की दयनीय स्थिति देखकर वासुदेव बळवंत फडके ने फिर भारतीय समाज में जागृति करने का कार्य शुरू कर दिया। इस कार्य के लिए उन्होंने कई इलाक़ों की यात्रा की और इसी दौरान सशस्त्र क्रान्ति ही अँग्रेज़ों को प्रतिकार करने का उपाय है […]

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क्रान्तिगाथा-२८

क्रान्तिगाथा-२८

२८ दिसंबर १८८५ को हुई एक घटना ने भारत के स्वतन्त्रतासंग्राम के आन्दोलन में एक अहम भूमिका निभायी। वह घटना थी – ‘इंडियन नॅशनल काँगे्रस’ की स्थापना। उस व़क़्त भारत में कई सुधार हो रहे थे। इस प्रक्रिया में से ही भारतीय विचारकों का एक बहुत बड़ा वर्ग उभरकर सामने आ रहा था। विचारकों की […]

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क्रान्तिगाथा-२७

क्रान्तिगाथा-२७

अँग्रेज़ों के भारत आने से एक और नयी समस्या उत्पन्न हो गयी थी। वह थी, उनका धर्म, उनकी संस्कृति और उनके मूल्य यहाँ के समाजमानस में जड़ें पकडने लगे थे। भारत में उस समय रहनेवाले कई धार्मिक-सामाजिक पंथों/मार्गों के सामने इन बदलावों को रोकना यह एक चुनौती थी। उसी समय अँग्रेज़ों के द्वारा भारत में […]

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क्रान्तिगाथा-२६

क्रान्तिगाथा-२६

भारत में अब एक नये पर्व की शुरुआत हो रही थी। सशस्त्र क्रान्ति की राह पर चलकर की गयी कोशिशों को हालाँकि क़ामयाबी न भी मिली हो, मग़र फिर भी भारतीयों के मन में रहनेवाली स्वतन्त्रताप्राप्ति की आस अब भी बरक़रार थी, दर असल दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही थी। इस भारतभूमि में […]

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