परमहंस-६६

परमहंस-६६

कामारपुकूर के इस वास्तव्य के दौरान रामकृष्णजी की मुलाक़ात हृदय की माँ हेमांगिनीदेवी के साथ हुई। उस वयोवृद्ध माता ने रामकृष्णजी के बारे में सुना ही था। इस भेंट के दौरान उसने रामकृष्णजी के चरण छूकर उन्हें प्रणाम किया। रामकृष्णजी जब उससे बातें कर रहे थे, तब बातों बातों में उसने, मेरी मृत्यु काशी (बनारस) […]

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परमहंस-६५

परमहंस-६५

रामकृष्णजी का कामारपुकूर में दैनंदिन जीवन शुरू था। पत्नी शारदादेवी, अपने पति की उच्च योग्यता को पहचानकर उनकी सेवा में निमग्न थी। उनकी पत्नी तो वह थी ही, साथ ही अब वह उनकी निस्सीम भक्त एवं प्रथम शिष्या भी बनी। ‘रामकृष्णजी’ ही उसके जीवन की केंद्रबिंदु बने थे। छोटी छोटी बातों के लिए भी वह […]

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परमहंस-६४

परमहंस-६४

रामकृष्णजी को हो रही दस्त की तीव्र परेशानी छः महीनों बाद अपने आप ही धीरे धीरे कम होती जाकर बन्द भी हुई। अद्वैतसिद्धांत साधना के मार्ग पर रामकृष्णजी ने तेज़ी से प्रगति की थी और इतनी शारीरिक पीड़ा होते हुए भी, मन को शारीरिक एवं भौतिक विषयों से अलग करना उन्हें आसानी से संभव होता […]

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परमहंस-६३

परमहंस-६३

रामकृष्णजी को अद्वैत साधना के सर्वोच्च स्थान पर स्थिर करने का ध्यास लिये तोतापुरी की ही अपूर्ण रह चुकी साधना जब इस उपलक्ष्य में पूर्णत्व को प्राप्त हुई, तब वे रामकृष्णजी से विदा लेकर अगली यात्रा के लिए चले गये। रामकृष्णजी लगभग अगले ५-६ महीने इस स्थिति में थे और इस दौरान उन्होंने कई बार […]

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परमहंस-६२

परमहंस-६२

तीन दिन बीत जाने के बावजूद भी रामकृष्णजी निर्विकल्प समाधिअवस्था में से बाहर नहीं आ रहे हैं, यह दृश्य तोतापुरी विस्मयचकित होकर देखते ही रहे थे। उन्हें चालीस सालों की कठिन उपासनाओं के बाद जो प्राप्त हुआ था, उसे रामकृष्णजी ने अद्वैतसाधना के मार्ग पर कदम रखने के एक ही दिन में प्राप्त किया था! […]

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परमहंस-६१

परमहंस-६१

तोतापुरी के मार्गदर्शन में अद्वैत सिद्धांत उपासना करते समय, उनके द्वारा बतायेनुसार रामकृष्णजी का अन्य भौतिक बातों का एहसास, उनका भान हालाँकि कम होता जाता था, मग़र फिर भी कालीमाता का रूप, उसका नाम भूलना उन्हें अभी भी संभव नहीं हो पा रहा था। कई बार प्रयास करके भी जब सफलता प्राप्त नहीं हो रही […]

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परमहंस-६०

परमहंस-६०

दास्य, सख्य, वात्सल्य? आदि नवविधा भक्ति, साथ ही तांत्रिक उपासना ये पड़ाव लाँघकर रामकृणजी ने अब अद्वैत सिद्धांत की उपासना का आरंभ किया था। उसके लिए आवश्यक वह सारी पूर्वतैयारी उनसे उनके इस साधना के गुरु तोतापुरी ने करा ली थी। इस साधना के लिए साधक द्वारा संन्यास लिया जाना आवश्यक होने के कारण, तोतापुरी […]

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परमहंस-५९

परमहंस-५९

तोतापुरी से वेदांतसाधना सीखने की अनुमति कालीमाता से प्राप्त होने के बाद रामकृष्णजी खुशी से तोतापुरी के पास आए और उन्होंने – यह साधना करने के लिए माँ की अनुमति होने की बात तोतापुरी को बतायी। वास्तविक अधिकारी साधकों के समूह में एक और साधक समाविष्ट होनेवाला है, इस बात की तोतापुरी को भी खुशी […]

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परमहंस-५८

परमहंस-५८

दास्य, सख्य, वत्सलता ऐसे विभिन्न मार्गों से रामकृष्णजी की ‘राधाभाव’ की साधना शुरू थी कि तभी उन्हें राधाजी के सगुणसाकार रूप में दर्शन हुए और उनकी उपासना अधिक ही ज़ोर से होने लगी। एक दिन उस भगवान श्रीकृष्ण के ही, उसके नित्यमनोहर रूप में उन्हें दर्शन हुए। रामकृष्णजी भावावस्था में मंत्रमुग्ध होकर उस दर्शन को […]

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परमहंस-५७

परमहंस-५७

एक बार भगवान के दर्शन हो जानेपर, उस में ही सन्तुष्ट न रहते हुए रामकृष्णजी ईश्‍वर के विभिन्न रूपों के दर्शनों की लालसा मन में रखकर, उसके लिए अथक रूप में प्रयास कर रहे थे और उस हेतु उन्होंने भक्ति के लगभग सभी प्रकारों को अपनाया। इस प्रवास में उन्हें ‘गुरु’ के रूप में प्राप्त […]

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