परमहंस-१०६

परमहंस-१०६

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख : ‘जिस तरह कोई सांसारिक मनुष्य धनसंपत्ति से, कोई पतिव्रता पत्नी अपने पति से, कोई माता अपनी संतान से प्रेम करती है, वह प्रेम ईश्‍वर से करना सिखो। दरअसल इन तीनों आकर्षणों का (लालच-मोह, प्रेम और वत्सलता) रूख़ एकत्रित रूप में उसी आर्तता के साथ ईश्‍वर की दिशा में मोड़ना […]

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परमहंस-१०५

परमहंस-१०५

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख : एक बार रामकृष्णजी उनके एक शिष्य बेणीमाधव पाल के निमंत्रण पर सत्संग के लिए उनके फार्महाऊस पर गये थे। बेणीमाधवजी पहले ब्राह्मो समाज से संलग्न होने के कारण ब्राह्मो समाज के कई साधक भी इस समय उपस्थित थे। हमेशा की तरह ही सत्संग के दौरान साधक रामकृष्णजी को जिज्ञासु […]

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परमहंस-१०४

परमहंस-१०४

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी दोपहर के खाने के बाद, दक्षिणेश्‍वरस्थित अपने कमरे में इकट्ठा हुए भक्तगणों से बातें कर रहे थे। विषय था – ‘ईश्‍वरप्राप्ति’। उनसे मिलने विभिन्न स्तरों में से और पार्श्‍वभूमियों में से लोग चले आते थे। उस दिन बंगाल के सुविख्यात ‘बौल’ इस आध्यात्मिक लोकसंगीत के कुछ गायक-वादक […]

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परमहंस-१०३

परमहंस-१०३

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख आधारचंद्रजी सेन के घर आयोजित किये सत्संग में रामकृष्णजी बात कर रहे थे और इस विवेचन के दौरान बंकिमचंद्रजी द्वारा और अन्य भक्तों द्वारा पूछे जानेवाले प्रश्‍नों के अनुसार भक्तिमार्ग का श्रेष्ठत्व, साथ ही मानवी जीवन में होनेवाली ईश्‍वर की अपरिमित आवश्यकता इनके बारे में निम्न आशय का विवेचन कर […]

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परमहंस-१०२

परमहंस-१०२

एक बार रामकृष्णजी के निकटवर्ती शिष्य आधारचंद्र सेन के घर सत्संग आयोजित किया गया था। कोलकाता में डेप्युटी मॅजिस्ट्रेट (उप-दंडाधिकारी) होनेवाले आधारचंद्रजी ने हमेशा के लोगों के साथ ही कई नये लोगों को भी आमंत्रित किया था, ताकि उनका भी रामकृष्णजी से परिचय हों। उनमें से कई लोग महज़ कौतुहल से, तो कोई रामकृष्णजी को […]

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परमहंस-१०१

परमहंस-१०१

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार ब्राह्मो समाज के एक साधक ने, ‘अपने षड्रिपुओं पर कैसे नियंत्रण पाया जाये’ ऐसा सवाल रामकृष्णजी से पूछा। उसपर रामकृष्णजी ने जवाब दिया – ‘षड्रिपुओं पर नियंत्रण पाने के प्रयास करने की अपेक्षा उन्हीं का ‘उपयोग’ किया जाये। षड्रिपुओं को उन ईश्‍वर की दिशा में मोड़ें। अर्थात ‘उन्हीं’ […]

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परमहंस-१००

परमहंस-१००

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख : एक बार रामकृष्णजी कोलकाता के नंदनबागान में सम्पन्न हुए ब्राह्मो समाज के एक सत्संग में, उन्हीं के निमन्त्रण पर सम्मिलित हुए थे। सत्संग के बाद रामकृष्णजी उपस्थितों से बातें कर रहे थे। इस सत्संग के लिए कोलकाता के कुछ विख्यात डॉक्टर, सब-जज्ज, लेखक आदि लोग आये थे, जो सत्संग […]

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परमहंस-९९

परमहंस-९९

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार जब रामकृष्णजी कोलकाता आये थे, तब तत्कालीन विख्यात शास्त्रवेत्ता शशधर तर्कचूडामणि से उनकी मुलाक़ात हुई। ह्यांना भेटण्यास गेले. शशधर बतौर ‘प्रकांड पंडित’ सुविख्यात थे और अपनी सभाओं में शास्त्रों से प्रमाण प्रस्तुत करके वे उपस्थित श्रोताओं को उनका अर्थ, विज्ञान के साथ मेल मिलाकर समझाकर बताते थे। इस […]

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परमहंस-९८

परमहंस-९८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख कोई माँ जिस तरह अपने बच्चों का हरसंभव खयाल रखती है, उनकी परवरिश की ज़िम्मेदारी प्यार से उठाती है, उन्हें लाड़-प्यार करने के साथ साथ उनमें अनुशासन भर देती है, उनकी रक्षा करती है; ठीक उसी तरह रामकृष्णजी अपने शिष्यों के साथ पेश आते थे। गुरु के पास आया हुआ […]

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परमहंस-९७

परमहंस-९७

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख उस दौर में कोलकाता और परिसर में, निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना का प्रतिपादन करनेवाले विभिन्न संप्रदाय बढ़ने लगे थे। लेकिन रामकृष्णजी, कम से कम भक्तिमार्ग के प्राथमिक पड़ाव पर तो ईश्‍वर के सगुण साकार रूपों को ही भजने के लिए कहते थे। ‘ये ईश्‍वर ज्ञानमार्ग से समझ पाने में, […]

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