मदुराई भाग – २

मदुराई भाग – २

श्रिय: कान्ताय देवाय कल्याणनिधयेऽर्थिनाम् । श्रीवेंकटनिवासाय श्रीनिवासाय मंगलम् ॥ सुबह सुबह कहीं से एम्. एस्. सुब्बलक्ष्मीजी की आवा़ज सुनायी दी और उसी क्षण मन महक गया मोगरे के फूलों की खुशबू से और साथ ही याद आया फिल्टर कॉफी का स्वाद। ये तीनों बाते मन को ले गयीं मदुराई में। मदुराई शहर को मानो उसके […]

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मदुराई भाग – १

मदुराई भाग – १

हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, उसका निर्माण कब हुआ, यह तो भगवान ही जानते होंगे। हमारी इस पृथ्वी पर कई देश और कई शहर बहुत ही प्राचीन समय से बसे हुए हैं, इसका इतिहास गवाह है। उन्हीं कुछ विकसित और वैभवशाली नगरों में से एक है ‘मदुराई’। वैगई नदी के तट पर बसे हुए […]

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पोर्ट ब्लेअर

पोर्ट ब्लेअर

अन्दमान-निकोबार द्वीपसमूह। बंगाल के उपसागर में बसा हुआ कई द्वीपों का समूह। एक समय ऐसा था, जब अन्दमान-निकोबार का नाम सुनते ही लोगों के होश उड़ जाते थे। क्योंकि इस द्वीपसमूह का और प्रमुख तौर पर अन्दमान का नाम जुड़ा हुआ था, ‘काले पानी’ की स़जा के साथ। वह समय था, भारत की आ़जादी के […]

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कुचबिहार

कुचबिहार

‘कुचबिहार’ इस शहर का नाम का़फी कम लोग जानते होंगे। स्कूल में शायद इतिहास या भूगोल में आपने यह नाम पढ़ा होगा। लेकिन इस शहर के बारे में का़फी दिलचस्प और महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होने लगी। ‘नाम में क्या रखा है?’  ऐसा कहा जाता है, इसके अनुसार अगर देखा जाये तो दरअसल किसी भी शहर […]

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वरंगल भाग- २

वरंगल भाग- २

काकतीय राजवंश के उदय एवं अस्त का गवाह होनेवाला वरंगल। दरअसल इन काकतीय राजाओं के शासनकाल में ही वरंगल पूरी तरह विकसित हुआ और काकतीयों की राजधानी का दर्जा प्राप्त होने के कारण वरंगल के विकास ने चोटी को छू लिया। काकतीयों के जमाने में वरंगल में उत्तमोत्तम मंदिरों का निर्माण हुआ, यह पिछले लेख […]

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वरंगल भाग-१

वरंगल भाग-१

इतिहास के विभिन्न कालखण्डों में भारत के हर एक प्रान्त पर विभिन्न राजवंशों ने राज किया। उस उस राजवंश ने उस उस प्रान्त पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी, जिससे विभिन्न प्रकार की कलाओं का, उदा. चित्रकला, शिल्पकला, मूर्तिकला आदि का उदय हुआ। इनमें से कुछ कलाप्रकार तो उस समय इतने विकसित थे कि आज […]

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भरुच

भरुच

हमारे भारतवर्ष में हम जब यात्रा करते हैं, तब एक अलग ही संस्कृति के साथ हमारा परिचय होता है और वह संस्कृति है, खाद्यसंस्कृति। कुछ गाँव या शहर इनकी पहचान होती है, वहाँ पर बनाये जानेवाले विशेष खाद्यपदार्थ। जैसे, कर्जत का आलूवड़ा (बटाटावडा), सुरत की घारी, आग्रा का पेठा, सातारा के कंदी पेड़ें, नासिक के […]

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त्रिचूर भाग – ४

त्रिचूर भाग – ४

त्रिचूर के इतिहास में ‘सक्थन थंपुरन’ राजा का स्थान का़फ़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसने त्रिचूर शहर की पुनर्रचना की और उपेक्षित स्थिति में से बाहर निकालकर त्रिचूर को पुनः एक बार ऊर्जितावस्था प्रदान की। आज हम ‘सक्थन थंपुरन’ राजा के त्रिचूर में स्थित राजमहल की सैर करेंगे। यह राजमहल ‘सक्थन थंपुरन राजा का राजमहल’ अथवा […]

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त्रिचूर भाग ३

त्रिचूर भाग ३

आदिम काल में अन्न की खोज में भटकनेवाला मनुष्य जब से एक जगह बसने लगा, तब से हक़ीकत में मनुष्य का जीवन अनुशासनबद्ध होने लगा। इसीसे फ़िर विभिन्न लोकसमूहों की संस्कृतियाँ विकसित होने लगीं। आगे चलकर ये संस्कृतियाँ विभिन्न प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने लगीं। इन संस्कृतियों में ही फ़िर नृत्य, नाट्य, साहित्य आदि का विकास […]

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त्रिचूर भाग २

त्रिचूर भाग २

‘वदक्कुंनाथन’ के यानि कि साक्षात् भगवान शिव के मन्दिर के इर्दगिर्द बसे इस त्रिचूर शहर की स्थिति कुछ शतकों पूर्व का़फ़ी दुर्लक्षित हो चुकी थी। उस समय इस वदक्कुंनाथन मन्दिर के चारों ओर का़फ़ी घना जंगल बढ़ चुका था और उसमें सागौन के का़फ़ी पेड़ थे। ‘सक्थन थंपुरन’ राजा ने इस जंगल की कटाई कर […]

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