समर्थ इतिहास-११ (अखंड भारत के आद्य जनक – महर्षि अगस्ति – अगस्त्य)

समर्थ इतिहास-११ (अखंड भारत के आद्य जनक – महर्षि अगस्ति – अगस्त्य)

महर्षि अगस्ति से मेरी पहली मुलाकात हुई, रामचरित में और वहाँ निर्माण हुआ स्नेह आगे चलकर बढ़ता ही गया। चारों वेद और पुराण तथा दक्षिण भारत की लोककथाएँ, प्रथाएँ एवं लोकगीत, साथ ही महर्षि अगस्ति के मंदिर इनके एकत्रित तेज से, अनंत की प्राप्ति करनेवाले इन ऋषिश्रेष्ठ की एक प्रतिमा बनती गयी। इन्होंने क्या कुछ […]

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समर्थ इतिहास-१०

समर्थ इतिहास-१०

समुद्रगुप्त के बारे में लेख लिखकर पूरे किये और समुद्रगुप्त के बारे में एक आख्यायिका ज्ञात हुई। उसे लोककथा कहा जा सकता है, प्रत्यक्ष इतिहास नहीं कहा जा सकता, परन्तु मेरी राय में लोककथाओं को भी ऐतिहासिक खज़ाने की रक्षा का सूत्र होता ही है; दर असल लोककथा यह मूल ऐतिहासिक तने में उत्पन्न हुई […]

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समर्थ इतिहास-९

समर्थ इतिहास-९

आदर्श राजा, आदर्श शासनव्यवस्था, आदर्श शासकीय अधिकारी, आदर्श लष्करी व्यवस्था, आदर्श धर्माचार्य, आदर्श भक्तिमार्ग, आदर्श शिक्षापद्धती, आदर्श आचार्य, आदर्श व्यापार और आदर्श प्रजा यानी ‘रामराज्य’ और ऐसा रामराज्य अयोध्या के बाद भारतीय इतिहास ने फिर एक बार देखा, महाविष्णु के नि:सीम भक्त रहनेवाले समुद्रगुप्त, दत्तदेवी और धर्मपाल के कालखंड में ही। समुद्रगुप्त के बाद वर्ष […]

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समर्थ इतिहास-८

समर्थ इतिहास-८

समुद्रगुप्त के कार्यकाल में वेग एवं बल प्राप्त हुआ एक सुंदर सांस्कृतिक प्रवाह था, नारदप्रणित भक्तिमार्ग का प्रवाह। स्वयं समुद्रगुप्त अत्यंत धार्मिक, श्रद्धावान और भक्तिसंगीत में रममाण होते थे। वे स्वयं भगवान विष्णु के उपासक थे, परन्तु इसके बावजूद भी उन्होंने उतने ही प्रेम से शिवमंदिरों का निर्माण किया और वे स्वयं भी शिवपूजन में […]

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समर्थ इतिहास-७

समर्थ इतिहास-७

समुद्रगुप्त के संपूर्ण साम्राज्य में ‘वसंतोत्सव’ को राष्ट्रीय उत्सव का स्थान प्राप्त हुआ था| सभी पंथीय एवं भाषिक प्रजाजन एक साथ आकर वसंतोत्सव मनाते थे| माघ शुक्ल पंचमी के दिन वसंतोत्सव का आरंभ होता था और फाल्गुन पूर्णिमा तक यह उत्सव मनाया जाता था| चैत्र-वैशाख यह वसंत ऋतु का काल माना जाता है, परन्तु मकर […]

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समर्थ इतिहास-६

समर्थ इतिहास-६

सम्राट समुद्रगुप्त के कार्यकाल में उनके द्वारा किया गया एक और महत्त्वपूर्ण कार्य था – उन्होंने पूरे साम्राज्य में विभिन्न स्थानों पर दो बड़े शहरों को जोड़नेवाले महामार्गों का निर्माण किया। कुल २४ महामार्गों का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है। इस महामार्ग पर से तीन हाथी एक साथ एक ही समय पर आराम […]

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समर्थ इतिहास-५

समर्थ इतिहास-५

सम्राट समुद्रगुप्त ये स्वयं अत्यंत रसिक मन के कलाप्रेमी थे| वे स्वयं उत्कृष्ट संगीत विशेषज्ञ और निपुण वीणावादक थे| वीणावादन यह समुद्रगुप्त के जीवन का वास्तविक मनोविश्राम था| समुद्रगुप्त ने संगीत, वाद्य और नृत्य इन तीनों कलाओं का विकास कराने में भरपूर सहायता की| उन्होंने जगह जगह ‘वात्स्यायन मंदिरम्’ स्थापित कर इन कलाओं को समृद्ध […]

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समर्थ इतिहास-४

समर्थ इतिहास-४

सम्राट समुद्रगुप्त का जन्म जिस गुप्त वंश में हुआ, वह ‘गुप्त’ घराना वैदिक धर्म का अनुयायी एवं विष्णुभक्त था| समुद्रगुप्त स्वयं भी महाविष्णु के परमभक्त थे| नियमित रूप से गायत्रीमन्त्र पठण, विष्णुसहस्रनाम और पुरुषसूक्त का पाठ करने का उनका आजीवन व्रत था| समुद्रगुप्त और दत्तदेवी ने अपने साम्राज्य में जगह जगह महाविष्णु के विशाल मन्दिरों […]

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समर्थ इतिहास-३

समर्थ इतिहास-३

सम्राट समुद्रगुप्त ये पराक्रमी एवं रणनीतिनिपुण योद्धा तो थे ही, साथ ही वे श्रेष्ठ एवं कुशल शासक भी थे| उन्होंने जिते हुए प्रदेशों के सभी राजाओं को उनके राज्य सम्मानपूर्वक लौटाये, केवल समुद्रगुप्त की सार्वभौमता को मानने की शर्त पर| ऐसे हर एक सामंत राजा के यहॉं समुद्रगुप्त के अपने दूत होते थे और समुद्रगुप्त […]

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समर्थ इतिहास-२

समर्थ इतिहास-२

ईसवी ३२० में रामनवमी के दिन समुद्रगुप्त का जन्म हुआ| चंद्रगुप्त (प्रथम) और कुमारदेवी का यह कनिष्ठ (छोटा) पुत्र था| गुप्त घराना उस समय की समाजव्यवस्था के अनुसार वैश्य वर्ण का था यानी व्यापार एवं व्यवसाय को भली भॉंति जानता था| उसी प्रकार, समुद्रगुप्त की माता कुमारदेवी ये लिच्छवी क्षत्रिय राजघराने की राजकुमारी थीं| इस […]

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