चीन के साथ चल रहे व्यापार में घाटा स्वीकारार्ह नहीं

व्यापारमंत्री निर्मला सीतारामन ने दिए संकेत

Nirmala Sitharaman

 

‘चीन के साथ चल रहे व्यापार में भारत को सहना पड़नेवाला घाटा यह यक़ीनन ही अच्छी ख़बर नहीं है। इस घाटे को बरामद करने के लिए भारत सरकार ने विभिन्न स्तरों पर से प्रयास शुरू किए हैं। चीन भारत के ‘दवानिर्माण’ तथा ‘आयटी’ इन क्षेत्रों के लिए अपने मार्केट्स अधिक प्रमाण में खुले कर दें, इसलिए सरकार की चीन के साथ चर्चाएँ शुरू हैं’ ऐसा केंद्रीय व्यापारमंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा है।

चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में भारत को सहना पड़नेवाले घाटे का प्रमाण दिनबदिन बढ़ता ही चला जा रहा है। सन २०१५ के अप्रैल महीने से लेकर सन २०१६ के जनवरी महीने तक भारत को चीन के साथ के व्यापार में तक़रीबन ४४.७ अरब डॉलर्स इतना घाटा सहन करना पड़ा। यह प्रमाण अत्यधिक चिंताजनक बन गया होकर, भारत सरकार इसपर गंभीरता से विचार कर रही है, यह सीतारामन के वक्तव्य से स्पष्ट हो रहा है। यह घाटा बरामद करने के लिए भारत सरकार ने शुरू किये प्रयासों में, भारत की दवानिर्माता कंपनियों एवं आयटी क्षेत्र की कंपनियों के लिए चीन अपने मार्केट्स खुले करें, इसके लिए भारत चीन के साथ चर्चा कर रहा होने की जानकारी भी व्यापारमंत्री ने दी।

इसीके साथ, चीन में से भारत आनेवाले कुछ उत्पादन देसी उद्योग पर असर कर रहे होने के कारण, ऐसे उत्पादनों को रोकने के लिए भारत ने कदम उठाये हैं, ऐसा सीतारामन ने कहा। इसके लिए भारत जागतिक व्यापार परिषद के माध्यम से  प्रयास कर रहा है, ऐसी जानकारी सीतारामन ने दी। एक तरफ़ चीन से आनेवाले ऐसे उत्पादनों को रोकने के साथ साथ दूसरी तरफ़, चीन भारत के लिए अपने मार्केट्स खुले कर दें इसलिए प्रयास किए जा रहे हैं। इन दोनों बातों से, चीन के साथ के व्यापार में भारत को होनेवाले घाटे का प्रमाण कम हो जायेगा, ऐसी उम्मीद व्यापारमंत्री ने जतायी।

इसी दौरान, भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी अपने चीन दौरे में इस व्यापारी घाटे का मुद्दा चीन के सामने उपस्थित किया था। वैसे ही, चीन भारत के आयटी एवं दवानिर्माता कंपनियों के लिए अपने मार्केट्स खुले कर दें, ऐसा आवाहन भी राष्ट्रपति मुखर्जी ने किया था। इससे पहले भी भारत की ओर से चीन को इस प्रकार के आवाहन किये गये थे। लेकिन भारतीय मार्केट्स का फ़ायदा उठाकर अरबों डॉलर्स की कमाई करनेवाला चीन, भारतीय कंपनियों के लिए अपने मार्केट्स खुले कर देने के लिए तैयार नही है, ऐसा बार बार स्पष्ट हुआ है।

चीन के मार्केट्स में उतरने का मौक़ा मिला, तो भारतीय दवानिर्माता कंपनियाँ एवं आयटी क्षेत्र में कार्यरत रहनेवालीं कंपनियाँ बहुत अच्छा परफॉर्मन्स  कर दिखायेंगी, इस डर ने चीन को ग्रस्त किया है। इसी कारण चीन भारत की यह माँग पूरी करने के लिए तैयार नही है, यह दिखायी दे रहा है।

पिछले कुछ हफ़्तों से भारत एवं चीन के बीच राजनीतिक स्तर पर तीव्र मतभेद हुए दिखायी दे रहे हैं । मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले का सूत्रधार रहनेवाले ‘मौलाना मसूद अझहर’ पर की जानेवाली संयुक्त राष्ट्रसंघ की कार्रवाई चीन ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रोकी थी । वैसे ही, परमाणु-ईंधन आपूर्तिकर्ता गुट (एनएसजी) में भारत के समावेश के बारे में भी चीन ने नकारात्मक भूमिका अपनायी है ।

इस प्रकार लगातार भारतविरोधी भूमिका अपनानेवाले चीन को इतनीं व्यापारी छूटें क्यों दी जा रही हैं, ऐसा सवाल संतप्त भारतीयों द्वारा पूछा जा रहा है । भारतीय जनमानस में रहनेवालीं चीनविरोधी भावनाओं का प्रतिबिंब अब सरकार की नीतियों में भी दिखायी देने लगा होकर, अब इसके आगे चीन के साथ के व्यापार में घाटा सहन करना भारत के लिए मुश्किल बनता जा रहा है, यह व्यापारमंत्री के निवेदन से ज़ाहिर होने लगा है ।

कुछ ही दिन पहले, भारत के सोशल मीडिया पर चीन के विरोध में गुस्सा उबलते हुए दिखायी दिया था । भारत से सारे व्यापारी फ़ायदे वसूल करनेवाला चीन, भारत का जानी दुश्मन रहनेवाले पाक़िस्तान की हर संभव सहायता कर रहा है । इतना ही नहीं, बल्कि भारत को हानि पहुँचाने का एक भी मौक़ा चीन हाथ से जाने नहीं देता, इसपर भारत के ‘नेटिझन्स’ ने बहुत ही तीखीं प्रतिक्रियाएँ दर्ज़ की थीं । भारत के साथ सहयोग करने की रट लगानेवाले चीन के कारनामें विश्वास बढ़ानेवाले यक़ीनन ही नहीं हैं, यह कहते हुए, ‘भारत सरकार चीन से सावधान रहें’ ऐसा मशवरा भी सोशल मीडिया में दिया जा रहा था ।

कुछ ही दिन पहले, दर्जाहीन चिनी उत्पादनों पर पाबंदी लगाने का महत्त्वपूर्ण निर्णय भारत की व्यापारमंत्री ने लिया था ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.