रक्त एवं रक्तघटक – ६२

अब तक हमने देखा कि रक्त किस प्रकार जमता है। रक्तवाहनियों में बहता हुआ रक्त क्यों नहीं जम जाता है? रक्त में तैयार होनेवाले क्लॉट की वृद्धि को कौन रोकता है? नॉर्मल रक्तवाहिनी के रक्त को अँटिकोअ‍ॅग्युलंटस् नामक घटक पतला रखता है। परन्तु बने हुए क्लॉट की वृद्धि को सीमित रखने का काम कौन करता है?

रक्तवाहिनी

अब हम इसका अध्ययन करेंगें। यह कार्य दो घटक करते हैं –
१) फ़ाइब्रिन तंतू : क्लॉट बनाने के लिए कारणीभूत होनेवाले फ़ाइब्रिन तंतू रक्त में उपस्थित ८५ से ९० प्रतिशित थ्रोंबिन सोख लेते हैं। फ़लस्वरूप क्लॉट की वृद्धि के लिये आवश्यक थ्रोंबिन रक्त में कम हो जाता है।

२) अ‍ॅँटिथ्रोंबिन III नामक प्रथिन रक्त में होती है। रक्त की १० से १५ प्रतिशत थ्रोंबिन जिसे फ़ाइब्रिन तंतू नहीं सोंखते, उनका अँटिथ्रोंबिन III के साथ जोड़ बन जाता है। फ़ाइब्रिनोजेन का रूपांतरण फ़ाइब्रिन में करने के लिये आवश्यक थ्रोंबिन रक्त में शेष ही नहीं बचती।

उपरोक्त दो क्रियाओं के फ़लस्वरूप रक्त के जमने की क्रिया सीमित रहती हैं।

हिपॅरिन नाम का एक और घटक रक्त में होता है। यह अ‍ॅँटिकोअ‍ॅग्युलंट घटक है। सामान्यत: रक्त में इसकी मात्रा कम ही होती है। इसीलिए इसकी अ‍ॅटिकोअ‍ॅग्युलंट अ‍ॅक्शन क्षीण होती है। परन्तु यही हिपॅरिन उचित मात्रा में औषधि के रूप में उपयोगी साबित होता है। शरीर में तैयार हो चुकी रक्त की गांठ को पिघलाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

अब हम देखेंगे कि तैयार हो चुका क्लॉट पूरी तरह किस प्रकार पिघलता है।

क्लॉट के पिघलने की क्रिया को Clot Lysis कहते हैं। प्लाझमिनोजेन (Plasminogen) नाम की एक प्रथिन हमारे रक्त में होती हैं। जब यह कार्यरत होती हैं तो इसका रूपांतर प्लाझमिन नामक प्रथिन में हो जाता है। प्लाझमिन, फ़ाइब्रिन के तंतू और रक्त को जमानेवाले घटकों को नष्ट करती है। क्लॉट तैयार होते समय प्लाझ्मा की अन्य प्रथिनों की तरह प्लाझमिनोजेन प्रथिनों की तरह प्लाझमिनोजेन यह प्रथिन भी उस क्लॉट में अटक जाता है। चोट खायी हुयी रक्तवाहिनी की एन्डोथिलिअम में से प्लाझमिनोजेन को कार्यरत करनेवाले घटक स्रवित होते हैं। ये घटक प्लाइमिनोजेन का रूपांतर प्लाझमिन में करते हैं। यह क्रिया चोट लगने के २४ घंटों बाद शुरु होती हैं। क्लॉट में तैयार हुए प्लाझमिन धीरे-धीरे क्लॉट को पिघला देते हैं। इस प्रकार रक्त के जमने से बंद पड़ चुकी छोटी रक्तवाहिनियाँ पुन: खुल(मुक्त) हो जाती है।

अभी तक हम रक्त के जमने की प्रक्रिया देखी। कभी-कभी रक्त जमता ही नहीं है और शरीर के अंदर और बाहर अति रक्तस्त्राव होता हैं। अब हम देखेंगे कि ऐसा क्यों होता हैं।

१) यकृत के विकार एवं विटामिन K की कमी : रक्त को जमानेवाले अधिकाँश घटक यकृत्-पेशियों में तैयार होते हैं। इसके कारण हिपॅटायटिस, सिरोसिस आदि बीमारियों में यकृत्पेशियों के कार्य कम हो जाते हैं। फ़लस्वरूप रक्त को जमानेवाले घटकों की कमी हो जाती हैं।
यकृत्पेशियों में इन घटकों को तैयार होने में विटामिन K का का़फ़ी योगदान होता है। हमारी आँतों में जो जीवाणु हमेशा रहते हैं, वहीं जीवाणु विटामिन K तैयार करते हैं। अन्न के स्निग्ध पदार्थों के साथ ये विटामिन सोंखे जाते हैं। क्योंकि वे स्निग्ध पदार्थों में ही घुलते हैं। आँतों द्वारा स्निग्ध पदार्थों का उचित शोषण होने के लिये आवश्यक बाइल (Bile) की, यकृत् की बीमारी के समय, कमी हो जाती है अथवा बाइल के मार्ग में बाधा आ जाती है। जिसके कारण स्निग्ध पदार्थों का उचित शोषण नहीं होता। फ़लस्वरूप विटामिन K का शोषण भी उचित मात्रा में नहीं होता, जिससे विटामिन K की कमी उत्पन्न हो जाती है। यकृत् की बीमारी और विटामिन K की कमी हो जाने के कारण रक्त को जमानेवाले घटकों की कमी हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में अतिरक्तस्राव का डर होता है।

२) हिमोफ़िलीआ : यह अनुवंशिक बीमारी है, जो सिर्फ़ पुरुषों में ही पायी जाती है। इसीलिये इसे Sex Linked diseases भी कहते हैं। इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों में कोई भी रक्तस्राव का़फ़ी समय तक होता रहता है। परन्तु इस रोग में आघात (trauma) के बिना रक्तस्त्राव नहीं होता। इस रोग में रक्त को जमानेवाले घटकों की कमी शरीर में होती हैं। ऐसे व्यक्तियों के रक्तस्त्राव को रोकने का एकमात्र उपाय है, रक्त में कम होनेवाले घटकों को बाहर से चढ़ाना। परन्तु यह उपाय जरा ज्यादा ही खर्चीला है।

३) थ्रोंबोसायटोपिनिआ : इसका सीधा अर्थ है रक्त में प्लॅटलेट की संख्या का कम होना। प्रत्येक मायक्रोलीटर रक्त में १,५०,००० से ३,००,००० तक प्लेटलेट पेशियां होती हैं। इनकी संख्या ५०,००० से कम हो जाने पर शरीर में अंदरूनी रक्तस्त्राव होता है। त्वचा के नीचे रक्तस्राव होने से त्वचा पर काले-नीले निशान निकलते हैं, इसे ही ‘परप्युरा’ यह नाम दिया गया है। इस विकार से पीडित व्यक्ति को बाहर से रक्त दिया जाता है। कई बार प्लेटलेट पेशियां भी दी जाती हैं।

(क्रमश:-)

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