६१. तुर्की संघराज्य का जन्म और ट्रान्सजॉर्डन को मान्यता (१९२० के दशक के घटनाक्रम)

आधुनिक तुर्की के जनक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क

इसवीसन १९२० का दशक केवल ज्यूधर्मियों के लिए ही नहीं, बल्कि कुल मिलाकर पूरे मध्यपूर्व के इला़के के लिए ही विशेष महत्त्वपूर्ण साबित होने लगा था। ख़ासकर इस दशक में हुईं इन गतिविधियों का आगे चलकर इस्रायल की भविष्यकालीन मार्गक्रमणा पर भी बहुत गहरा असर हुआ।

इस १९२० के दशक में हुई पहली महत्त्वपूर्ण गतिविधि यानी तुर्की देश का जन्म।

ऑटोमन साम्राज्य हालाँकि नामशेष हुआ था और अब वह केवल अन्तोलिया तक ही सीमित बचा था, तुर्कों की राष्ट्रभावना मरी नहीं था। उल्टी अब तो वह राष्ट्रभावना अधिक ही खौलकर उठी थी और दोस्तराष्ट्रों के शिकंजे से मुक्त होकर स्वतंत्र तुर्की राष्ट्र का निर्माण करने का खयाल तुर्की जनमानस में बढ़ने लगा था। इस राष्ट्रभावना को एक विशिष्ट दिशा में सफलतापूर्वक ले जाने का काम किया ‘मुस्तफा कमाल पाशा’ इस तुर्की सेनाधिकारी ने।

इस विश्‍वयुद्ध के बाद सारी ऑटोमन सेना विसर्जित की गयी थी, जिसमें मुस्तफा कमाल के अधिकार में होनेवालीं टुकड़ियों का भी समावेश था। नवम्बर १९१९ में इस्तंबूल लौटने पर कुछ ही दिनों में कमाल की समझ में आया कि सर्वत्र इस घटनाक्रम के विरोध में ग़ुस्सा खौल रहा है और लोगों ने अपने अपने तरी़के से इसका विरोध करने की तैयारी भी शुरू की है। लेकिन इस विरोध का स्वरूप अभी भी अस्तव्यस्त है।

कमाल ने आधुनिक तुर्की की राजधानी को इस्तंबूल से अंकारा स्थलांतरित कर दिया।

तुर्की लोगों में फैल रहे इस असंतोष को कुचल देने हेतु ‘विश्‍वसनीय अफ़सर’ के रूप में कमाल को ही भेजा गया। उसे सर्वाधिकार दिये गये थे। लेकिन कमाल ने इस अवसर का उपयोग विभिन्न स्थानों के लोगों में अस्तव्यस्ततापूर्वक फैल रही राष्ट्रभावना को एकत्रित करने के लिए किया।

फिर कमाल ने, तुर्की के विभिन्न स्थानों के लोगों के स्थानीय नेताओं की एकत्रित सभा बुलायी। इस सभा में तुर्की को आज़ाद करने का निर्धार व्यक्त किया गया और तुर्की की अस्थायी सरकार की स्थापना की गयी और उसके प्रमुख के स्थान पर कमाल को चुना गया। लेकिन अब इस्तंबूल सुरक्षित नहीं है, यह जानकर कमाल ने इस्तंबूल से लगभग ३०० मील पर होनेवाले ‘अंकारा’ शहर को (जो अ‍ॅन्तोलिया के मध्यवर्ती भाग में स्थित था) अपनी अस्थायी सरकार की राजधानी बनाया और नयी सेना बनाने की शुरुआत की।

सन १९२० में दोस्तराष्ट्रों ने पराजित ऑटोमन सुलतान को ‘सेव्हेर के समझौते’ पर हस्ताक्षर करने पर मजबूर किया। अ‍ॅन्तोलिया के भी टुकड़ें करनेवाले इस समझौते को कमाल ने ठुकरा दिया और उसने अतुलनीय पराक्रम का प्रदर्शन कर दोस्तराष्ट्रों की सेना को एक के बाद एक अ‍ॅन्तोलिया से खदेड़ दिया। इसमें उसे, पश्‍चिमी देशों को दुश्मन माननेवाले सोव्हिएत रशिया से सहायता मिली।

अन्तोलिया के भी और टुकड़ें करनेवाला सेव्हेर का समझौता कमाल ने ठुकरा दिया।

पश्‍चिमी शासनप्रणालियों का अध्ययन किये कमाल ने, अब राजेशाही प्रणाली को ख़त्म कर जनतन्त्र ही अपनाने का निर्धार किया था। उसके अनुसार तुर्की में आयोजित किये गये पहले चुनावों में उसे भारीभरकम सफलता मिली और उसे पहली अधिकृत सरकार का अध्यक्ष चुना गया। ‘यह सरकार धर्मनिरपेक्ष होगी’ ऐसा घोषित किया गया था।

उसी के साथ संसद में ‘ऑटोमन सल्तनत’ को ख़ारिज कर देने की प्रस्ताव पारित हुआ। आखिरी ऑटोमन सुलतान देश छोड़कर भाग गया। तुर्की में पश्‍चिमी प्रभाव होनेवाली धर्मनिरपेक्ष सरकार की स्थापना करने के साथ ही, ‘खलिफा’ (जागतिक मुस्लिम समुदाय का औपचारिक पदसिद्ध प्रमुख) इस पद (‘खिलाफत’) को भी ख़ारिज कर देने का प्रस्ताव सन १९२४ में पारित किया गया। (इसवीसन १५वीं सदी में ऑटोमन साम्राज्य जब संपन्नता की बुलंदी पर था, उस समय से ऑटोमन सुलतान को ही मुस्लिमों का ‘खलिफा’ मानने की शुरुआत हो चुकी थी।)

दोस्तराष्ट्रों ने स्वित्झर्लंडस्थित लॉसान में आयोजित की गयी परिषद में तुर्की को बतौर ‘स्वतंत्र देश’ मान्यता दी। तुर्की की सीमाएँ निश्‍चित की गयीं। गत छः सदियों से मध्यपूर्व पर अधिराज करनेवाला ऑटोमन साम्राज्य ख़त्म होकर उसके उत्तराधिकारी के रूप में स्वतंत्र तुर्की देश अस्तित्व में आ गया था।

आगे चलकर इस्रायल बतौर ‘स्वतंत्र देश’ अस्तित्व में आने के बाद उसे तुरन्त ही मान्यता देनेवाला पहला मुस्लिम-बहुसंख्य (‘मुस्लिम-मेजॉरिटी’) देश तुर्की था।

ट्रान्सजॉर्डन की स्थापना करनेवाली और बाद में स्वतंत्र जॉर्डन के राजा बने ‘किंग अब्दुल्ला-१’

इसी के साथ इस दशक में घटित हुई एक और महत्त्वपूर्ण घटना यानी ‘ट्रान्सजॉर्डन को मान्यता प्राप्त होना’।

ऑटामन्स के विरुद्ध हुए विश्‍वयुद्ध में ऑटोमन साम्राज्यस्थित अरबों ने ब्रिटिशों की सहायता करने के बावजूद भी, ब्रिटिशों ने अपने वचन का पालन न किया होने की भावना अरबों के दिलों में घर कर गयी थी। मक्का के शरीफ और अमीर होनेवाले हुसेन इब्न अली के साथ हुए पत्रव्यवहार में यह आश्‍वासन दिया गया था। हाशेमी राजघराने के सदस्य होनेवाले हुसेन का और उसके – अब्दुल्ला, फैजल और अली इन तीन बेटों का उस समय हेजाज प्रान्त पर (आज के सौदी अरेबिया का सबसे पश्‍चिमी प्रान्त) राज?था। इस्लामधर्मियों के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होनेवाले मक्का और मदिना ये स्थान इसी प्रान्त में हैं।

लेकिन विश्‍वयुद्ध के पश्‍चात् अरबी स्वतंत्रता को मान्यता देने के बजाय और अरबों की योजना के अनुसार पश्‍चिम की ओर सिरियास्थित अलेप्पो से पूर्व की ओर एडन तक एकछत्री अरबी राज्य निर्माण करने के बजाय, ब्रिटिशों ने इस प्रदेश के हिस्से बनाकर उन्हें दोस्त राष्ट्रों के साथ बाँट लिया था। ऑटोमन साम्राज्य के इन मध्यपूर्व के प्रदेशों को लेकर ब्रिटीश एवं फ्रेंचों में पहले से ही वैसा गोपनीय समझौता (‘साईक्स-पिको करार’ अथवा ‘आशिया-मायनर करार’) हुआ था।

हुसेन इब्न अली के बेटे – फैजल के नेतृत्व में ऑटोमन्स के खिलाफ़ मदिना से शुरू हुई यह अरबों की बग़ावत पहले ट्रान्सजॉर्डन तक और आगे चलकर सिरिया प्रांत तक बढ़ती गयी। दमास्कस पर कब्ज़ा कर बाक़ायदा ‘सिरियन अरब साम्राज्य’ की स्थापना की गयी। लेकिन यह साम्राज्य केवल चार महीने ही टिक सका। क्योंकि उसकी तीन-चार महीने बाद ही विश्‍वयुद्ध के ख़त्म होने पर हुए समझौते की चर्चाओं में यह सिरिया प्रदेश फ्रेंचों के कब्ज़े में दिया गया। फ्रेंच सेना के आगे इस नवजात सिरियन अरब साम्राज्य को हार खानी पड़ी। फैजल को भगा दिया गया। उसके बाद फैजल ने ब्रिटन में पनाह ली। लेकिन उसका ब्रिटीश साम्राज्य के लिए अनुकूल रवैया देखकर, ब्रिटिशों ने उसे सिरिया से सटे इराक प्रान्त (‘ब्रिटीश मँडेट ऑफ इराक’) की अमिरात बहाल की, जिसका उसने स्वीकार किया।

फैजल का भाई अब्दुल्ला, फैजल के हाथों से निकल गये इस सिरियन अरब साम्राज्य को पुनः प्राप्त करने की मुहिम पर निकला। लेकिन यह करने के लिए उसे फ्रेंच सेना से टक्कर लेना अनिवार्य था। लेकिन उसकी इस योजना के बारे में जान जाते ही, तत्कालीन ब्रिटीश उपनिवेशमंत्री विन्स्टन चर्चिल ने उसे ऐसा न करने की सलाह दी। पहली बात, उसकी सेना फ्रेंच सेना की तुलना में बहुत ही कम थी और फ्रेंच उस समय ब्रिटिशों के विश्‍वयुद्धकालीन सहकर्मी होने के कारण, ब्रिटीश फ्रेंचों के विरुद्ध की लड़ाई में उसकी कुछ भी सहायता नहीं कर सकनेवाले थे। यह व्यावहारिक सलाह अब्दुल्ला ने मान ली और दमास्कस पर धावा बोल देने का खयाल त्यागकर वह ट्रान्सजॉर्डन में पहुँच गया।

उस समय ट्रान्सजॉर्डन में इतनी छोटी-छोटी टोलियाँ थीं कि किसी का भी एकछत्री अमल न होने के कारण वहाँ असमंजसता का माहौल था। इसका फ़ायदा उठाकर अब्दुल्ला ने ट्रान्सजॉर्डन पर कब्ज़ा कर लिया और ‘अम्मान’ (विद्यमान जॉर्डन की राजधानी) में ‘ट्रान्सजॉर्डन अमिरात’ की स्थापना की। इस प्रान्त में हंोनेवाली इतनी अव्यवस्था के कारण ब्रिटिशों को भी वहाँ राज करने में कुछ ख़ास दिलचस्पी नहीं थी और उन्हें अरबों को शान्त भी करना था। अतः उन्होंने अब्दुल्ला को बतौर ‘ट्रान्सजॉर्डन के शासक’ मान्यता दी और ज्यूधर्मियों पर, ‘ब्रिटीश मँडेटरी पॅलेस्टाईन’ प्रान्त में से ही बहनेवाली जॉर्डन नदी के पूर्व की ओर बसने की पाबंदी लगायी; अर्थात् ज्यूधर्मियों के लिए क़बूल किये पॅलेस्टाईन प्रान्त का ही भाग होनेवाले इस ‘ट्रान्सजॉर्डन’ प्रदेश को उनके हाथ से छीनकर, उसे पूरी तरह से अरबों के लिए आरक्षित रखा गया था। हालाँकि वह ‘ब्रिटीश मँडेट पॅलेस्टाईन’ के अंतर्गत ही था, उसे ज्यूधर्मियों के प्रान्त की तुलना में बहुत ही अधिक स्वायत्तता दी गयी थी। इस ट्रान्सजॉर्डन में से ही आगे चलकर आज के इस्रायल के पड़ोसी होनेवाले ‘जॉर्डन’ देश का जन्म हुआ और ‘किंग अब्दुल्ला-१’ के घराने की सत्ता वहाँ शुरू हुई, जो आज तक बरक़रार है।

ब्रिटीश मँडेट पॅलेस्टाईन में से बहनेवाली जॉर्डन नदी के पूर्व की ओर का हिस्सा (ट्रान्सजॉर्डन) अरबों को बहाल किया गया।

भविष्यकाल पर प्रभाव डालनेवाली ऐसी कई गतिविधियों को जन्म देते हुए १९२० का दशक धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था!(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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