अमरिकी सिनेट में भारत को विशेष दर्जा प्रदान करने के लिए विधेयक पेश

वॉशिंगटन – नाटो के सदस्य देशों की तरह ही अमरिका की लष्करी सहायता भारत को देने का प्रावधान करनेवाला विधेयक अमरिका के संसद में रखा गया है| सत्तापक्ष और विपक्ष के दो सिनेटर्स ने रखे इस विधेयक को काफी बडी सामरिक अहमियत प्राप्त हुई है| यह विधेयक अमरिकी सिनेट में मंजूर हुआ है और अगली कार्यवाही हुई तो अमरिका से भारत को अतिप्रगत और संवेदनशील रक्षा तकनीक सहजता से प्रदान हो सकेगी| इससे पहले इस्रायल, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड एवं दक्षिण कोरिया इन देशों को ही अमरिका ने यह दर्जा प्रदान किया था|

सत्तापक्ष के सिनेटर जॉन कॉर्नीन और डेमॉक्रॅट के मार्क वॉर्नर ने ‘आर्म्स कंट्रोल एक्सपोर्ट एक्ट’ (एसीईए) में सुधार करने के विधेयक का मसौदा रखा| ‘एसीईए’ में यह सुधार हुए तो अमरिका से भारत को अतिप्रगत लष्करी तकनीक प्राप्त हो सकेगी| इस वजह से दोनों देशों में बना रक्षा सहयोग नई उंचाई प्राप्त करेगा, यह विश्‍वास व्यक्त किया जा रहा है| खास तौर पर चीन अपने सामर्थ्य के बल पर ‘इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्र के देशों को चुनौती दे रहा है और ऐसे में भारत एवं अमरिका में बना यह सहोय निर्णायक साबित हो सकेगा|

अमरिका के पास दुनिया की सबसे प्रगत रक्षा तकनीक एवं रक्षा सामान है| लेकिन, अन्य देशों को यह प्रदान कते समय अमरिका के कानून अडंगा बनते है| संसद में विधेयक संमत करके इस कानून में सुधार किए बिना अमरिका भारत या अन्य किसी भी देश को यह तकनीक प्रदान नही कर सकती| इस पृष्ठभूमि पर अमरिका के दो सिनेटर्स ने रखे इस विधेयक की अहमियत है| इससे पहले भी अमरिका ने भारत के साथ धारणात्मक एवं सामरिक स्तर पर सहयोग बढाने की मांग अमरिका के सत्ता एवं विपक्षी दलों के जिम्मेदार सिनेटर्स ने रखी थी|

भारत और अमरिका में ‘कम्युनिकेशन कॉम्पॅबिलिटी ऍण्ड सिक्युरिटी अग्रीमेंट’ (सीओएमसीएएसए-कॉमकासा) समझौता हुआ था| पिछले वर्ष हुए इस समझौते से जरूरत पडने पर भारत और अमरिका एक दुसरे के लष्करी अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगे| इस वजह से भारत और अमरिका का सामरिक बल और भी बढने का दावा दोनों देशों से किया गया था| वही, चीन ने यह सहयोग अपने विरोध में होने का दावा करके इस पर आपत्ति जताई थी| चीन की सरकारी माध्यम इस मुद्दे पर भारत और अमरिका पर कडी आलोचना कर रही थी| लेकिन, ‘एसीईए’ में सुधार होना यह दोनों देशों के बीच बने सहयोग का अगला स्तर है और इसपर भी चीन से कडी आपत्ति दर्ज होने की कडी संभावना है|

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