विमान के अहम पुर्जे तैयार करने के लिए आवश्‍यक ‘बीटा टायटेनियम’ ‘डीआरडीओ’ ने विकसित किया – रक्षांमत्री ने किया अभिनंदन

नई दिल्ली – विमान के अतिसंवेदनशील एवं अहम पूर्जे तैयार करने के लिए आवश्‍यक उच्च क्षमता के ‘मेटास्टेबल बीटा टायटेनियम’ नामक मिश्रित धातू ‘डीआरडीओ’ ने विकसित किया है। पूरी तरह की स्वदेशी तकनीक की वजह से विमान के अहम पुर्जों का उत्पादन करने के लिए इस धातु का औद्योगिक स्तर पर इस्तेमाल करना मुमकिन होगा। साथ ही इस धातु की वजह से विमान का भार करना भी संभव होगा, यह जानकारी रक्षा मंत्रालय ने साझा की है। भारत ने स्वदेशी लड़ाकू विमान विकसित किए हैं। इसके आगे की आवृत्ति के विमान भी जल्द ही रक्षाबलों के बेड़े में शामिल होंगे। भारत के इन विमानों के विकास कार्यक्रम के लिए भी इस खोज़ से बल प्राप्त होगा।

‘बीटा टायटेनियम’

भारत की ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ (डीआरडीओ) ने विकसित किया हुआ उच्च क्षमता का ‘मेटास्टेबल बीटा टायटेनियम’ नामक मिश्रित धातु वनेडियम, लोहा और एल्युमिनियम के खास मिश्रण से तैयार किया गया है। प्रौद्योगिकी स्तर पर इसे ‘टीआय-१०वी-२एफई-३ए१’ नाम दिया गया है। विमान के पुर्जों का निर्माण करने के लिए परंपरा अनुसार इस्तेमाल हो रहे ‘एनआय-सीआर-एमओ’ नामक लोहे के बजाय अब इस मिश्रित धातु का इस्तेमाल किया जा सकेगा। यह धातु भार में कम है और इसकी क्षमता भी अधिक है। यह धातु जंग प्रतिरोधक और अभंग है। साथ ही इसके निर्माण का खर्च भी कम है।

इसकी वजह से विमान के लिए संमिश्रित धातुओं से तैयार हो रहे फ्लैप ट्रैक, लैंडिंग गियर, ड्रॉप लिंक जैसे विभिन्न पुर्जों के निर्माण के लिए इस नए मिश्रित धातु का इस्तेमाल किया जाएगा और इससे विमान का भार कम करना भी संभव होगा। लड़ाकू विमानों के लिए यह खोज़ काफी अहम साबित हो सकती है। साथ ही, बड़े पैमाने पर खर्च भी घटेगा। उच्च क्षमता के ‘मेटास्टेबल बीटा टायटेनियम’ नामक मिश्रित धातु के निर्माण के लिए ‘डीआरडीओ’ के वैज्ञानिकों ने बड़ी मेहनत की है और कच्चे सामान का चयन, उसकी प्रक्रिया एवं अन्य तकनीकी मुद्दों का गहराई से अनुसंधान किया है। साथ ही इस धातु की जाँच करने के लिए अलग अलग संस्थाओं ने काम किया है, यह जानकारी भी केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने साझा की है। बंगलुरू में ‘हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स’ (हल) ने तैयार किए विमान में इस धातु के पुर्जों का इस्तेमाल करके सफल परीक्षण किए गए हैं, यह बात रक्षा मंत्रालय ने रेखांकित की है।

हैदराबाद में स्थित ‘डीआरडीओ’ की रक्षा क्षेत्र के लिए आवश्‍यक धातु की लैब ‘डीएमआरएल’ में ‘बीटा टायटेनियम’ का निर्माण किया गया है। ‘एरॉनॉटिकल डेवलपमेंट एजन्सी’ (एडीए) ने विमान के १५ पुर्जों के निर्माण के लिए इस धातु का इस्तेमाल करने का निर्णय किया है। इसलिए इन पुर्जों का भार कम से कम ४० प्रतिशत तक घटेगा, यह दावा किया जा रहा है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस कामयाबी पर ‘डीआरडीओ’ के वैज्ञानिकों का अभिनंदन किया है। साथ ही ‘डीआरडीओ’ के प्रमुख डॉ.जी.सतीश रेड्डी ने भी इस धातु के निर्माण में अहम योगदान देनेवाले वैज्ञानिकों की सराहना की है।

इसी बीच, मई में ‘डीआरडीओ’ ने स्वदेशी ‘एरो इंजन’ विकसित करने की दिशा में काफी अहम संशोधन शोधकार्य होने का ऐलान किया था। ‘डीआरडीओ’ ने ‘एरोइंजन’ के लिए आवश्‍यक ‘निअर आयसोथर्मल फोर्जिंग’ की तकनीक विकसित की थी। इस तकनीक की वजह से ‘टायटेनियम’ के मिश्रण से ‘हाय-प्रेशर कम्प्रेसर’ (एचपीसी) डिस्क का निर्माण संभव होता है। यह ‘डिस्क’ एरो इंजन में बड़ी अहम होती है।

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