दुनियाभर में अनिश्चितता बढ़ते समय रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता अनिवार्य बनी है – रक्षा मंत्री राजनाथ सिंग

जैसलमेर – ‘साउथ चाइना सी हो, हिंद महासागर क्षेत्र हो अथवा इंडो-पैसिफिक अथवा मध्य एशियाई क्षेत्र हो, सर्वत्र अनिश्चितता बढ़ती चली जा रही है। जागतिक स्तर पर तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं और अनपेक्षित घटनाएँ सामने आ रही हैं। अफगानिस्तान की गतिविधियाँ यह इस अनिश्चितता की मिसाल देनेवाला उदाहरण साबित हो सकता है। ऐसे दौर में विभिन्न देश अपने अपने हितसंबंधों के अनुसार फैसले कर रहे हैं। इस कारण रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता यह अब भारत के लिए विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बनी है’, ऐसा गौरतलब बयान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंग ने किया है।

defence-atmanirbhartaजमीन से हवा में दागे जा सकनेवाले मीडियम रेंज ‘एमआरसॅम- मिडियम रेंज सरफेस टू एअर मिसाईल’ का वायुसेना में सहभाग करने का कार्यक्रम राजस्थान में आयोजित किया गया। भारत के डीआरडीओ और इस्रायल एरोस्पेस इंडस्ट्रीज् के सहयोग से ये क्षेपणास्त्र विकसित किए गए हैं। ये क्षेपणास्त्र वायुसेना में सहभागी किए गए होकर, राजस्थान में संपन्न हुए इस कार्यक्रम में बात करते समय रक्षा मंत्री ने, अफगानिस्तान की परिस्थिति से लेकर इंडो-पैसिफिक तथा मध्य एशियाई क्षेत्र तक के प्रांतों में तेज़ी से जारी गतिविधियों की मिसाल दी।

दुनियाभर की राजनीतिक परिस्थिति तेज़ी से बदलती चली जा रही है। ऐसी परिस्थिति में देश अपने अपने हितसंबंधों के अनुसार फैसले कर रहे हैं। ऐसे दौर में भारत के लिए आत्मनिर्भरता यह विकल्प न होकर, वह अनिवार्यता बनी है, ऐसा रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया। उसी समय, एमआरसॅम के लिए भारत ने इस्रायल के साथ सहयोग किया और यह बात दोनों देशों के बीच का रक्षा विषयक व्यापक सहयोग अधोरेखांकित करनेवाली साबित होती है, ऐसा रक्षा मंत्री ने आगे कहा। इस्रायल ने इससे पहले सन १९९९ के कारगिल युद्ध में भारत की सहायता की थी। उससे भी पहले सन १९७१ के बांग्लादेश युद्ध में भारत को इस्रायल से सहायता मिली, इसकी याद रक्षा मंत्री ने दिलाई ।

इस प्रकार कारगिल युद्ध में और बांग्लादेश का निर्माण करनेवाले, पाकिस्तान के साथ हुए सन १९७१ के युद्ध में भारत को इस्रायल से सहायता मिली थी, यह बात भारत ने सार्वजनिक नहीं की थी। लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंग ने यह घोषणा करके पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। इसी बीच, वर्तमान समय में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को भारी मात्रा में महत्व आया होकर, इससे देश अधिक बलशाली होगा, ऐसा विश्वास रक्षा मंत्री ने ज़ाहिर किया। साथ ही, ३० साल पहले देश के स्वतंत्र क्षेपणास्त्र कार्यक्रम का ध्येय सामने रखनेवाले देश के दूरदर्शी वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के प्रचंड योगदान की रक्षा मंत्री ने तहे दिल से खुलकर प्रशंसा की।

देश में रक्षा सामग्री और शस्त्रास्त्रों का निर्माण गति पकड़ रहा है और उसकी अन्य देशों को निर्यात भी शुरू हुई है , इसका हवाला देकर उसपर रक्षा मंत्री ने संतोष ज़ाहिर किया। रक्षा सामग्री और शस्त्रास्त्रों की आयात में भारत पहले नंबर का देश था। लेकिन अब भारत सुरक्षा यंत्रणा निर्यात करने लगा है। आनेवाले दौर में भारत का रक्षा क्षेत्र अपने कदमों पर मज़बूती से खड़ा रहेगा, इसका यकीन इस समय रक्षा मंत्री ने दिलाया।

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