अल्टरनेटींग करंट एवं डॉ. निकोल टेसला

अहंकारपूर्ण प्रदर्शन अर्थात सामर्थ्य नहीं, अहंकारी मनुष्य अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए ही अहंकाररुपी मुखौटे का उपयोग करता है,Nikola Tesla ऐसा कहा जाता है। डॉ.निकोल टेसला के जीवन का अगला प्रवास करते समय यह वाक्य अपना एक अलग ही महत्त्व रखता है – सही मायने में धैर्यवान, सामर्थ्यवान एवं संयमशीलता का मानवी प्रतीक अर्थात डॉ.निकोल टेसला। अहंकारी वृत्ति के पीछे अपनी कमजोरी को छिपानेवाले डॉ.टेसला के विरोधक अकसर उन्हें दबाने की कोशिश में लगे रहे।

कुछ दिनों पहले ही हमने एक खबर पढ़ी थी। अपनी रेलसेवा अब तक ‘डायरेक्ट करंट’ अर्थात ‘डीसी’ विद्युतप्रवाह का उपयोग रही थी। मगर अब उसमें बदलाव लाते हुए रेलसेवा ‘अल्टरनेटींग करंट’ अर्थात एसी का उपयोग करनेवाली है। देखा जाये तो विद्युतप्रवाह में होनेवाला यह बदलाव बहुत सामान्य बात लगती है। बिजली के प्रवाह के लिए डीसी का उपयोग करें या एसी कोई फर्क नहीं पड़ता मुंबई के लोकल से आज लगभग ६५ लाख लोग किस प्रति प्रवास करते हैं। इतने बड़े पैमाने पर प्रवास करनेवाले रेलसेवा के विद्युतप्रवाह में होनेवाला बदलाव कोई छोटी बात नहीं। इस बदलाव एवं डॉ.निकोल टेसला का क्या संबंध है इस बात की जानकारी हम हासिल करेंगे।

१८८२ में अर्थात लगभग सवासौ वर्ष पहले डॉ.टेसला ने ‘अल्टरनेटींग करंट’ अर्थात एसी की संकल्पना का आविष्कार किया। एसीद्वारा होनेवाला विद्युतभार संवाहन बिलकुल व्यावहारिक एवं नैसर्गिक साबित होता है ऐसा श्री.टेसला का कहना था। इससे पहले ‘डीसी’ पद्धति से ही बिज़ली का उपयोग किया जाता था। परन्तु डॉ.टेसला को एसी की संकल्पना कैसी सूझी इसकी कथा अत्यन्त विस्मयकारी हैं।

१८८२ में ‘बुडापेस्ट’ में एक दिन दोपहर के समय घुमते समय वे एक कविता की पंक्ति गुनगुना रहे थे। यह कविता ‘गोएथ’ नामक प्रसिद्ध कवि की थी। इसी समय जैसे अचानक बिजली चमकती है वैसे ही यह कल्पना डॉ.टेसला के दिलो-दिमाग पर छा गई और वही से ‘एसी’ विद्युतप्रवाह संकल्पना का जन्म हुआ। इसीलिए इस कल्पना के पीछे भी कोई परमेश्वरी लीला होगी ऐसा उनका विश्वास था। केवल यह संकल्पना अथवा संशोधन ही नहीं बल्कि मेरे हर एक वैज्ञानिक खोज के पीछे कोई परमेश्वरी संकल्पना कार्यरत रहती है ऐसा उनका दृढ विश्वास था। एसी की युक्ति आते ही तुरन्त उन्होंने वहीं पर रेत में ही हाथ की छड़ी से उसकी एक रुपरेखा बना दी। यह डायग्राम था ‘रोटेटींग मॅग्नेटिक फिल्ड’ का। छ: वर्ष पश्चात् यही ‘डायग्राम’ उन्होंने ‘अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रीकल इंजीनियर्स’ भी बैठक में बिलकुल उसी प्रकार प्रस्तुत किया था।

pg12_rotatingडॉ.टेसला को बुडपिस्ट में सूझनेवाली ‘एसी’ की संकल्पना इतनी क्रान्तिकारी थी कि आज भी हम अपने आये दिन के दैनिक जीवन में श्री.टेसला के इस थ्री फेज(पॉलीफेज) ‘अल्टरनेटिंग करंट सिस्टम’ का उपयोग करते हैं। यही ‘अल्टरनेटींग करंट’ स्टेप-अप, स्टेप-डाऊन ट्रान्सफॉर्मर, एसी मोटर इन सब पर आधारित लगभग ४० पेंटर टेसला ने प्राप्त किया। और आज भी ये सिस्टम बिलकुल उसी प्रकार उपयोग में लाये जाते हैं। इससे ही उनके वैज्ञानिक प्रतिभा के दिव्यत्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

१८८८ में जब डॉ.टेसला ने अमरीका के इन्स्टिट्यूट में सबके सामने अपने इस शोध को प्रस्तुत किया तो सभी के सभी पत्रकारों आदि के आश्चर्य का ठीकाना ना रहा। सर्वत्र धरों को एवं औद्योगिक क्षेत्रों को प्रकाशमान करने का, बिजली के संशोधन का सारा श्रेय डॉ.टेसला को ही जाता है। औद्योगिक क्रांति के जनक के रुप में भी डॉ.टेसला का उल्लेख किया जाता है। कारण यहीं से इलेक्ट्रिफिकेशन, मास प्रॉडक्शन लाईन आदि संकल्पनाओं का विकास हुआ। डॉ.टेसलाद्वारा तैयार किये गए अल्टरनेटींग करंट के आधार पर ही। यदि इनके संशोधन से उस समय सभी के सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए थे, फिर भी उनके संशोधन को मान्यता प्राप्त करवाने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था। इसका कारण भी भिन्न था उसका विज्ञान अथवा संशोधन के साथ कोई संबंध नहीं था।
‘थॉमस अल्वा एडिसन’ ये महान माने जानेवाले संशोधक, ‘डायरेक्ट करंट’ का पुरस्कर्ता थे। एडिसन से मुलाकात हेतु पॅरिस से आनेवाले टेसला से वे मिले। तब तक एडिसन के प्रति डॉ.टेसला के मन में उनके प्रति बहुत आदर था। एडिसन उस समय ‘किंग ऑफ इलेक्ट्रिसिटी’ माने जाते थे। परन्तु पहली मुलाकत में ही डॉ.टेसला ने एडिसन के सामने ही ‘डायरेक्ट करंट’ के प्रति होनेवाले दोष को साबित कर दिया। इतना ही नहीं; बल्कि उससे भी अधिक उत्तम महत्त्व रखनेवाले ‘अल्टरनेटींग करंट सिस्टम’ की संकल्पना एडिसन के सामने प्रस्तुत की।

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यह सुनकर एडिसन को बहुत बुरा लगा। दर असल डॉ.टेसला की कल्पना ठीक से वे समझ ही नहीं पाये थे। डॉ.टेसला ने डीसी पद्धति के माध्यम से दूर तक विद्युतभार वाहन करने में आनेवाली कठिनाइयों की जानकारी एडिसन को दी। डीसी के माध्यम से पूरे न्यूयॉर्क शहर को बिजली पहुँचानी है तो इसके लिए सैकड़ों ‘पॉवर स्टेशन’ की ज़रूरत होगी। परन्तु एसी द्वारा यह विद्युतभार संवाहन करने पर केवल न्यूयॉर्क शहर ही नहीं बल्कि संपूर्ण न्यूयॉर्क राज्य को बिजली पहुँचाने के लिए केवल एक पॉवर स्टेशन काफी होगा, यह बात टेसला ने एडिसन को समझाने की कोशिश की थी।

‘किंग ऑफ इलेक्ट्रिसिटी’ उपाधि प्राप्त एडिसन डॉ.टेसला की बात सुनकर स्तब्ध रह गए उन्हें अपने पैरों तले की ज़मीन खिसकती नजर आने लगी। हालाकि डॉ.टेसला उनका मार्ग आसान करने के लिए ही एसी का महत्त्व उन्हें समझाना चाहते थे कारण यह तरीका अधिक वैज्ञानिक एवं नैसर्गिक था। इस सलाह में कोई ईर्ष्या-द्वेष की भावना नहीं थी। फिर भी उनकी भावनाओं का सम्मान करने की बजाय एडिसन उनके कट्टर विरोधी बन गए। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि इनकी बात मान जाने से उनका व्यवसाय खतरे में पड़ जायेगा। यद्यपि डॉ.टेसला का एसी के प्रति मार्गदर्शन करने के पीछे उनका व्यक्तिगत लाब नहीं था। वे तो केवल वैज्ञानिक नजरियेसे उन्हें समझाना चाहते थे कि डीसी पद्धति से विद्युतसंवाहन करने से बिजली का बहुत बड़े, पैमाने पर अपव्यय होता है साथ यह पद्धति अनैसर्गिक एवं अव्यवहारी थी। डॉ.टेसला ने एडिसन को यह भी बताया था कि यदि वे एसी पद्धति का उपयोग करते हैं तो यह संकल्पना दुनिया के लिए बहुत बड़ी क्रांतिकारी साबित हो सकती है। यदि एडिसन उस समय डॉ.टेसला की बात मान लेते तो इससे मानवी जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आ सकता था। परन्तु एडिसनने उन्हें तुरन्त ही गलत साबित करके दुत्कार दिया।

चूँकी एडिसन उस समय के एक महान संशोधक माने जाते थे और अधिक ऊँचाई पर होने के कारण उन्होंने डॉ.टेसला का अपमान कर उनके आत्मविश्वास को खंडित करना चाहा। परन्तु डॉ. टेसला ने विज्ञान के प्रति होनेवाली निष्ठा एवं परमेश्वर के प्रति होनेवाले अपार विश्वास को टूटने नहीं दिया। और इसी विश्वास ने डीसी सिस्टम के दोषों को एडिसन के सामने प्रस्तुत करने की हिम्मत भी दी। साथ ही डॉ.टेसला ने इससे पहले किए गए संशोधनों को भी पूर्ण आत्मविश्वास के साथ पूरी दुनिया के सामने प्रदर्शित भी किया। कारन उन्हें अपने संशोधन पर पूरा विश्वास था और उन में धैर्य भी था।

अपने अहंकार का प्रदर्शन करना अर्थात सामर्थ्य नहीं, बल्कि यह अहंकारी प्रवृत्ति हमारे अंदर की कमजोरी को छिपाने का एक मुखौटा होती है। डॉ.टेसला के विरोधकों को इस मुखौटे की ज़रूरत अकसर पड़ती रही। परन्तु डॉ.टेसला मात्र कभी भी कमजोर नहीं पड़े वे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना संशोधन कार्य लोगों के साथ प्रस्तुत करते रहे। इससे मानवी जीवन और भी अधिक सुलभ बनता रहा यही तो उनके संशोधन का ध्येय था।

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