आधार घटनात्मकरूप से वैध होने का सर्वोच्च न्यायालय का बयान

स्कूल प्रवेश, बैंक खाता एवं सिम कार्ड के लिए आधार अनिवार्य नहीं

नई दिल्ली – आधार कार्ड की घटनात्मक वैधता सर्वोच्च न्यायालय ने मंजूर की है तथा आधार कार्ड की वजह से ‘राइट टू प्राइवेसी’ का उल्लंघन नहीं हो रहा, ऐसा बयान सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है और आधार का उपयोग और उसकी अनिवार्यता इस बारे में न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण सूचनाएं की है। उसके अनुसार मोबाइल सिम के लिए, स्कूल एवम महाविद्यालय में प्रवेश के लिए तथा बैंक खाते के लिए, आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया जा सकता तथा निजी कंपनियाँ भी आधार कार्ड की मांग नहीं कर सकते। यह ऐतिहासिक निर्णय होने की बात कहकर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उसका स्वागत किया है। आधार कार्ड कल्याणकारी योजनाओं से जुड़ने से देश के लगभग ९० हजार करोड रुपए बच रहे हैं, ऐसी जानकारी केंद्रीय वित्त मंत्री ने दी है।

सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य करने के विरोध में एवं बैंक खाता, मोबाइल सिम के लिए आधार जोड़ना अनिवार्य करने के निर्णय के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय में २७ याचिका दाखिल की गई थी। इन याचिकाओं में आधार के घटनात्मक वैधता को चुनौती दी गई थी। तथा आधार की वजह से राइट टू प्राइवेसी पर अर्थात निजी जीवन पर अतिक्रमण होने का आरोप इन याचिका में किया गया था। इन याचिका पर पिछले वर्ष से एक साथ सुनवाई शुरू हुई थी। इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई पांच सदस्यों की अदालत में हो रही थी।

बुधवार को इस मामले में अंतिम सुनवाई हुई है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में आधार की घटनात्मक वैधता मंजूर की है। सर-न्यायाधीश दीपक मिश्रा इन की अध्यक्षता में अदालत ने अपने निर्णय में आधार विधेयक यह मनी बिल होने का बयान दिया है। इसकी वजह से आधार विधेयक में सुधार एवं मंजूरी के लिए सरकार को राज्यसभा के मंजूर की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए केवल लोकसभा की मंजूरी आवश्यक है। सरकारने आधार विधेयक को मनी बिल बनाया, उसके विरोध में न्यायालय में याचिका जारी की गई थी। राज्यसभा में मंजूरी टालने के लिए सरकार द्वारा ऐसा करने का आरोप हुआ था। इस पृष्ठभूमि पर अदालत के पांच सदस्यों में से चार न्यायाधीशों ने आधार विधेयक को मनी बिल होने की मंजूरी देकर सरकार को दिलासा दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में आधार राइट टू प्राइवेसी के लिए खतरनाक होने का दावा नामंजूर किया है। आधार के लिए यूआइडीएआइ में कम से कम कागजात और बायोमेट्रिक जानकारी दी है। जिसकी वजह से प्राइवेसी खतरे में नहीं आ रही, ऐसा न्यायालय ने स्पष्ट किया है। तथा आधार योजना यह डिजिटल इकोनामी का प्रतीक होने की बात सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित की है।

आधार की वजह से कल्याणकारी योजनाओं का लाभ न्यूनतम स्तर के व्यक्तियों को सीधा मिल रहा है। यह योजना आम जनता के हित के लिए है। आधार की वजह से सामान्य नागरिकों को पहचान मिली है और उनके सशक्तिकरण का काम इस बारे हो रहा है, ऐसा भी न्यायालय ने रेखांकित किया है। पर न्यायालय ने आधार की अनिवार्यता के बारे में महत्वपूर्ण शर्तें रखी हैं।

आधार न होने पर स्कूल प्रवेश से इनकार नहीं किया जा सकता। मोबाइल सिम और बैंक खाता खोलने के लिए आधार अनिवार्य नहीं किया जा सकता। नीट, सीबीएसई, यूजीसी जैसे परीक्षाओं के लिए आधार बंधनकारक नही रहेगा, यह न्यायालय स्पष्ट किया है। तथा कल्याणकारी योजनाओं में आधार न होने पर भी छोटे बच्चों को उसके लाभ से वंचित नहीं रखा जा सकता।

पर पैन कार्ड, आयकर रिटर्न तथा कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड बंधनकारक है, ऐसा न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है। इसके सिवाय आधार विधेयक में कलम ५७ रद्द करें। इस कलम में प्रावधान के अनुसार टेलीकॉम कंपनियां एवं अन्य निजी कंपनियों को आधार जानकारी लेने का अधिकार रद्द करें, ऐसा न्यायालय ने स्पष्ट किया है।

दौरान सरकार ने इस निर्णय का स्वागत किया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अब तक १२२ करोड़ नागरिक आधार से जोड़ने की जानकारी दी है। आधार की वजह से मध्यस्थों पर होने वाला खर्च तथा बनावट लाभधारक घटे हैं। इसकी वजह से प्रतिवर्ष सरकार के ९० हजार करोड रुपए बचने की बात वित्त मंत्री जेटली ने कही है।

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