८६. १९४८ का अरब-इस्रायल युद्ध

इस्रायल की भूमि में स्वतंत्र ज्यू-राष्ट्र स्थापन हुआ होने की घोषणा करके डेव्हिड बेन-गुरियन ठेंठ तेल अवीव्हस्थित अपने सेना-मुख्यालय की ओर रवाना हुए थे।

इस नये राष्ट्र ने जनतन्त्र शासनपद्धति अपनायी होने के कारण उसके शासक ये चुनाव पद्धति से ही चुने जानेवाले थे। लेकिन पहले चुनाव होने तक के समय में अंतरिम सरकार शासन करनेवाली थी और इस अंतरिम सरकार के अस्थायी प्रधानमन्त्री खुद डेव्हिड बेन-गुरियन ही होनेवाले थे।

इस्रायल की स्वतंत्रता का उद्घोष करनेवाले बेन गुरियन का भाषण चल ही रहा था कि तभी दूर से विमानों की आवाज़ें सुनायी देने लगीं।

इसी दौरान इस नवजात ज्यू-राष्ट्र – इस्रायल को सर्वप्रथम अमरीका की और बाद में विभिन्न देशों की मान्यता मिली होने के संदेश आने लगे। रात बीतती चली जा रही थी। बेन-गुरियन ने रेडिओ पर से अमरिकी जनता को संबोधित कर ठेंठ प्रसारित भाषण किया।

लेकिन बेन-गुरियन का भाषण चल ही रहा था कि तभी अचानक दूर से विमानों की आवाज़ें सुनायी देने लगीं और शत्रुहमले की चेतावनी देनेवाले सायरन बजने लगे। ब्रिटीश मँडेट के ख़त्म होने पर जिस अरब देशों के आक्रमण की चर्चा की जा रही थी, उसकी शुरुआत विमानहमले से हो रही थी। वे इजिप्शियन लड़ाकू विमान तेल अवीव्ह की दिशा में चले आ रहे थे। बेन-गुरियन को जल्दी में ही भाषण का समारोप करना पड़ा।

हालात आपत्कालीन थे। ज्यूधर्मियों के आधुनिक इतिहास के सबसे आनंददायी दिवस को ‘सबसे भयंकर दिन’ कहने की नौबत आयी थी। पहले से ही अरबों के साथ नागरी युद्ध का मुक़ाबला कर रहे ज्यूधर्मियों को अब बाहरी हमले का भी सामना करना पड़नेवाला था।

ऊपरी तौर पर तो लड़ाई विषम (असमान) थी….

हाल ही में जन्मा एक दिन का ज्यू-राष्ट्र; विरुद्ध – पाच अरब राष्ट्र….

संघर्ष का अनुभव हालाँकि था, मग़र बड़े पैमाने पर के युद्ध का कुछ ख़ास अनुभव न होनेवाली इस्रायली सेना; विरुद्ध – युद्धसुसज्जित होनेवालीं पाच देशों की सेनाएँ….

इस्रायल के पास होनेवाली अपर्याप्त युद्धसामग्री एवं संख्याबल; विरुद्ध – सैन्यबल तथा शस्त्रबल की कमी न होनेवाली अरब देशों की सेना….

कुल मिलाकर ज्यूधर्मियों के लिए प्रतिकूल परिस्थिति ही थी। लेकिन इस सारी प्रतिकूलता को पीछे छोड़ देनेवालीं कुछ बातें ज्यूधर्मियों के पास थीं –

उनके पास ज्वलंत देशप्रेम था;

इतनी प्रदीर्घ प्रतीक्षा के बाद प्राप्त हुई मातृभूमि की रक्षा जान की बाज़ी लगाकर करने की दुर्दम्य ज़िद थी और उसके लिए आवश्यक लड़ा़कू मानसिकता भी थी;

साथ ही, डेव्हिड बेन-गुरियन जैसा परिपक्व, मज़बूत और लड़ा़कू वृत्ति का नेतृत्व उन्हें प्राप्त हुआ था!

….और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यानी उनका उनके ईश्‍वर पर अटूट भरोसा था। ‘यह ज्यू-राष्ट्र ईश्‍वरप्रदत्त है, अतः उसे बचाने के लिए भी इन सारे संकटों से भी वही बचायेगा’ यह ज्यूधर्मियों की प्रामाणिक धारणा थी।

सन १९४८ के अरब-इस्रायली युद्ध की शुरुआत इजिप्शियन विमान के बमहमले से हुई।

इसी कारण, यह हमला होने के बाद बेन-गुरियन के दिल में हालाँकि थोड़ीबहुत चिन्ता थी, मग़र डर रत्तिभर भी नहीं था।

अपना रेडियो पर का भाषण जल्दी में ख़त्म कर बेन-गुरियन ने खुली जीप में से तेल अवीव्ह की एअरस्ट्रिप की ओर प्रयाण किया। तब तक इजिप्शियन विमानों द्वारा एअरस्ट्रिप पर बमबारी शुरू हुई थी और एअरस्ट्रिप का अच्छाख़ासा नुकसान हो चुका था। उस एअरस्ट्रिप पर रखे गये एकमात्र इस्रायली विमान का भी नुकसान हुआ था।

वैसे हॅगाना ने पूरे पॅलेस्टाईन प्रांत के कोने कोने में, युद्धसमय में बरते जानेवाले एहतियातों के बारे में पोस्टर्स लगाकर जनजागृति की ही थी। इसमें हर एक घर में आपत्कालीन तहखाने बनाने से लेकर खुले में विचरण करना टालने तक सभी प्रकार का मार्गदर्शन किया गया था। इस कारण इस बमहमले में हालाँकि नुकसान ज़रूर हुआ था, मग़र जीवितहानि नहीं हुई थी।

धीरे धीरे ख़बरें आने लगीं। चारों ओर से इस्रायल से सटे पाँचों अरब देशों ने आक्रमण किया था। पश्‍चिमी ओर से लगभग १० हज़ार इजिप्शियन सेना सिनाई प्रदेश लाँघकर आगे आयी थी। पूरब की ओर से ट्रान्सजॉर्डन की लगभग ४५०० सेना ने आक्रमण किया था। लेबेनॉन, सिरिया एवं इराक इन देशों की सेनाएँ भी इस्रायल की सीमाओं तक पहुँच रही थीं। ऊपर से सौदी अरेबिया भी अपनी सेना की टुकड़ियों को अरबों के पक्ष में लड़ने के लिए भेजनेवाला होने की ख़बर थी।

वैसे इस्रायल की सेनासंख्या ३० हज़ार के आसपास थी। यह संख्या हालाँकि अरब सेना की तुलना में ज़्यादा प्रतीत हो रही थी, मग़र वह कागज़ पर ही; क्योंकि यह सारी सेना सारे इस्रायल में बिखरी थी और पॅलेस्टिनी अरब टोलियों के साथ संघर्ष में उलझी हुई थी।

लेकिन ब्रिटिशों ने यहाँ से जाते समय, इतने साल पॅलेस्टाईन प्रांत में बिनापरवाना स्थलांतरित होनेवाले ज्यूधर्मियों को पकड़कर हिरासत में रखने के लिए सायप्रस स्थित जो बेस कार्यान्वित किया था, उसे अब बन्द करके वहाँ रखे ज्यूधर्मियों को रिहा किया था। इस्रायल ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा करते समय ज्यूधर्मियों के पॅलेस्टाईन में होनेवाले स्थलांतरण पर की सभी पाबंदियाँ उठायी ही थीं और ‘इस्रायल में स्थलांतरित होने के लिए ज्यूधर्मियों को हमेशा ही मुक्तद्वार होगा’ ऐसा भी घोषित किया था। अत एव अब ये सारे सायप्रस-वासी ज्यूधर्मीय पॅलेस्टाईन में लौटने लगे थे और इस्रायली सेना में भर्ती होनेवालों की संख्या भी दिनबदिन बढ़ती चली जा रही थी।

लेकिन इतनी प्रतिकूल परिस्थिति में भी इस्रायल के लिए अनुकूल साबित होनेवाली एक और बात यानी – इन पाँच अरब राष्ट्रों ने हालाँकि पहले से तय करके इस्रायल को नेस्तनाबूद करने के लिए एक ही समय सेनाएँ भेजीं थी, लेकिन उनकी सेनाओं में कुछ ख़ास सहमति नहीं थी, ऑपरेशन में सुसूत्रता का अभाव था; दरअसल असमजंसता का ही माहौल था। और तो और, इन देशों के शासकों में भी सुप्त अनबन थी और इस युद्ध में उनकी निजी महत्त्वाकांक्षाएँ भी अलग अलग थीं। (उदा. जॉर्डन के शासक किंग अब्दुल्ला पॅलेस्टाईन में अरब राष्ट्र का निर्माण करने के लिए ज़रा भी इच्छुक नही थे, उल्टे वे इस, युनो द्वारा अरब-राष्ट्र बनाने के लिए प्रदान किये गये भाग को जॉर्डन का हिस्सा बनाने के ख्वाब देख रहे थे।)

१४-१५ मई १९४८ की रात पाँच अरब देशों की सुसज्जित सेनाओं ने चारों ओर से इस्रायल पर आक्रमण किया था।

इन सारीं बातों के कारण, सेनासंख्या से भी अधिक चिन्तादायी बात इस्रायल के लिए थी, उनकी अपर्याप्त युद्धसामग्री। अरब सेनाओं के पास १५० से भी अधिक तोपें, १७५ से भी अधिक बॅटलटैंक्स, आर्मर्ड वेहिकल्स, साथ ही, ६० से भी अधिक बॉम्बर लड़ा़कू विमान ऐसी भारीभरकम सामग्री थी। उसकी तुलना में इस्रायल के पास तोपें, बॅटलटैंक्स तथा लड़ाकू विमान इनकी संख्या बहुत ही कम थी और उनमें से भी कई चीज़ें पुरानी बनावट की ही थीं।

इसके लिए इस्रायल ने की हुई, शस्त्रास्त्रसहायता की विनती को कई राष्ट्रों ने अनदेखा किया था और रोकड़ा रक़म देकर हथियार ख़रीदने के लिए इस्रायल के पास पैसा नहीं था।

इस कारण, इस अरब-इस्रायल युद्ध के शुरुआती दौर में तो सब जगह अरब सेनाओं का पलड़ा भारी होता हुआ दिखायी दे रहा था और इस्रायली सेना पीछे हट रही थी। पॅलेस्टाईन प्रांत में ज्यूधर्मियों को प्रदान किये गये प्रदेश (ज्यू-राष्ट्र) के अलावा होनेवाला भाग (यानी प्रस्तावित अरब-राष्ट्र का भाग) धीरे धीरे इस अरब सेना के कब्ज़े में चला जा रहा था।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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